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लक्ष्य निर्धारित कर सम्यकत्व के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष का मार्ग मिलेगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा.

लक्ष्य निर्धारित कर सम्यकत्व के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष का मार्ग मिलेगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा. 

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जैन तीर्थंकरों का परिचय

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जैन तीर्थंकरों का परिचय   जैन धर्म के 24 तीर्थंकर है। इसमें से प्रथम तथा अंतिम चार तीर्थंकरों के बारे में बहुत कुछ पढ़ने को मिलता है किंतु उक्त के बीच के तीर्थंकरों के बारे में कम ही जानकारी मिलती हैं। निश्चित ही जैन शास्त्रों में इनके बारे में बहुत कुछ लिखा होगा, लेकिन आम जनता उनके बारे में कम ही जानती है। यहाँ प्रस्तुत है  24 तीर्थंकरों का सामान्य परिचय। https://www.jinvachan.blogspot.com १) आदिनाथ :- प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को ऋषभनाथ भी कहा जाता है और हिंदू इन्हें वृषभनाथ कहते हैं। आपके पिता का नाम राजा नाभिराज था और माता का नाम मरुदेवी था। आपका जन्म चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी-नवमी को अयोध्या में हुआ। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपको कैवल्य की प्राप्ती हुई। कैलाश पर्वत क्षेत्र के अष्टपद में आपको माघ कृष्ण-१४ को निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- बैल, चैत्यवृक्ष- न्यग्रोध, यक्ष- गोवदनल,यक्षिणी-चक्रेश्वरी हैं। २) अजीतनाथजी : द्वितीय तीर्थंकर अजीतनाथजी ...

कुलकर, 63शलाका पुरुष तथा अन्य पूण्य पुरुष

🚩🚩*कुलकर, 63शलाका पुरुष तथा अन्य पूण्य पुरुष*🚩 🚩 त्रेसठ शलाका के पुरूष चतुर्थ काल में होते है ढाई द्वीप की 170 कर्मभूमियों में से 160 विदेह क्षेत्र में सदा चतुर्थ काल रहता है। पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्रों में प्रथम से छठे काल के क्रम से चतुर्थ काल आता है। 🚩🚩🚩🚩 चौदह कुलकारों के नाम (1) श्री प्रतिश्रुति (2) श्री सन्मति (3) क्षेमंकर (4) सीमंकर (5) सीमंकर (6) सीमंधर (7) विमल वाहन (8) चक्षुमान (9) यशस्वी (10) अभिचन्द्र (11) चन्द्रप्रभ (12) मरूदेव (13) प्रसेनजित (14) नाभिराजा। *** कुलकरों की पत्नियों के नाम *** (1) स्वयंप्रभा (2) यशस्वी (3) सुनंदा (4) विमला (5) मनोहरी (6) यशोधरा (7) सुमति (8) धारिणी (9) कांतमाला (10) श्री मती (11) प्रभावती (12) सत्या (13) अभितमति (14) मरूदेवी 🚩🚩🚩🚩 * किसी कुलकर ने प्रजा के लिए क्या किया* 1 - पहले कुलकर ने सूर्य चन्द्रोदय से भय मिटाया। 2 - दूसरे कुलकर ने अंधकार तथा तारागण से भय मिटाया। 3 - तीसरे कुलकर ने हिंसक जन्तुओं की संगति त्याग करने का उपदेश दिया। 4 - चैथे कुलकर ने हिंसक जन्तुओं से रक्षण के उपाय बताये। 5 - पांचवे कुलकर ने ...

Nav pad oliji vishesh lekh नव पद ओलिजी नमो सिद्धाणं

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   नवपद ओलीजी का दूसरा दिन  *सिद्ध पद की आराधना का दिन* 9 पदों में किसी भी व्यक्ति विशेष को वंदना नही की गयी है। जो जो आत्मा उन उन महान गुणों तक पहुँचे है उन सभी गुणीजनों को एक साथ वंदना की गयी है। ।।नमो सिद्धाणं।। सिद्ध प्रभु का परिचय जिन आत्माओ ने खुद के ऊपर लगे हुए सभी कर्मों का क्षय कर दिया हो। जो संसार के बंधन से मुक्त हो गए है। जो कभी जन्म नही लेंगे।  जिनकी कभी मृत्यु नही होगी, जिनका कोई शरीर, मन नही है। उन पवित्र आत्माओं को सिद्ध कहा जाता है। जिनके सभी काम सिद्ध हो गए है। सिद्ध यानि अपना खुद का स्वरुप प्राप्त करना। सिद्ध पद को प्राप्त करना ही आज के हर भव्य जीव का लक्ष्य है। अरिहंत प्रभु के कुछ कर्म क्षय होना बाकी होता है।आयुष्य का बंधन भी होता है। जबकि सिद्ध प्रभु की कोई बंधन नही होता है। सिद्ध प्रभु के साथ जो आत्मा अपना मन लगा देता है उसका मोक्ष निश्चित हो जाता है। सभी बंधन से रहित सभी सिद्धि को प्राप्त 14 राजलोक के मुकुट समान भाग पर रहे हुए है। सामान्य भाषा में कहे तो अपने ऊपर छत्र के समान वो बिराजित है। हमारी आराधना, तपस्या  , साधना आदि...

Samayik ke 32 dosh सामायिक के बत्तीस दोष

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  सामायिक के बत्तीस दोष      मन के दस दोष :- अविवेग जसोकित्ती, लाभत्थी गव्व-भय णियाणत्‍थि | संसय रोस अविणउ, अबहुमाण ए दोसा भणियव्‍वा || १.अविवेक - विवेक बिना सामायिक करे तो "अविवेक" दोष | २.यशकीर्ति - यश-कीर्ती के लिये सामायिक करे तो "यशकीर्ती" दोष | ३.लाभार्थ - धनादि के लाभ की इच्छा से सामायिक करे तो "लाभ वाँछा" अर्थात्‌ "लाभार्थ" दोष | ४.गर्व - गर्व (अहंकार) सहित सामायिक करे तो "गर्व" दोष | ५.भय -राज्यादि के अपराध के भय से सामायिक करे तो "भय" दोष | ६.निदान - सामायिक में नियाण (निदान) करे तो "निदन" दोष | ७.संशय - फल में सन्देह रख कर सामायिक करे तो "स्शंय" दोष | ८.रोष - सामायिक में क्रोध, मान, माया, लोभ करे तो "रोष" दोष | ९.अविनय - विनयपूर्वक सामायिक न करे तथा सामायिक में देव, गुरु, धर्म की अविनय-आशातना करे तो "अविनय" दोष | १०.अबहुमान - बहुमान भक्तिभावपूर्वक सामायिक न कर के बेगारी के समान सामायिक करे तो "अबहुमान" दोष | वचन के दस द...

meru teras nirvan kalyan mahotsav

आदिनाथ भ. का निर्वाण कल्याणक महोत्सव          मेरु तेरस माघ वदी तेरस (मेरु तेरस) इस दिन देवाधिदेव युगादिदेव जगपति, जिनपति, वर्तमान चोवीसी के प्रथम तीर्थंकर असि, मसि, कृषि, को समझाने वाले श्री आदिनाथ परमात्मा अपने 10000 शिष्यों के साथ श्री अष्टापद तीर्थ पर चट्टान की भांति खड़े रहकर काउसग मुद्रा में परमात्मा के चौदह गुण स्थानक में रहकर अपने दिव्य ओर अनुपम रूप को प्रज्वलित कर सभी कर्मों को क्षय कर अष्टापद तीर्थ पर मोक्ष गति को प्राप्त हुए। इस दिन को मेरु तेरस कहा जाता है। विनीता नगरी में जन्मे प्रभु की आयु 84 लाख वर्ष की थी उनके 108 पुत्र 2 पुत्रिया थी।वे पूर्व नववाणु बार सिद्धगिरी आये। प्रभु108 नमो से शुशोभित है। 500 धनुष (3000)फिट की काया वाले तीसरे आरे के अंत में तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष रहने पर 84 लाख वर्ष की आयु पूर्ण कर अष्टापद तीर्थ पर माघ वदी तेरस के दिन दस हजार आत्माओ के साथ मोक्ष गए।          *परिचय* प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म चैत्र कृष्ण नौवीं के दिन सूर्योदय के समय ...

Bhaktamar stotra भक्तामर स्त्रोत

  श्री भक्तामर स्त्रोत भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम्। सम्यक्-प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम्।। 1॥

protect the life of birds

मूक पक्षियों की प्राण रक्षा के लिए पतंग ना उड़ाने का संकल्प लेकर उन्हें अभय दान दे। और इस सूची मे अपना नाम अंकित करे Loading… आप भी नियम लियो और आगे और लोगो को भेजिए जिससे आप भी उनके पुण्य के निमित बने। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

shri mangalashtak stotra श्री मंगलाष्टक स्त्रोत

*श्री मंगलाष्टक स्त्रोत* अर्हन्तो भगवत इन्द्रमहिताः, सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा, आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायकाः श्रीसिद्धान्तसुपाठकाः, मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं, कुर्वन्तु नः मंगलम्

mahavir ashtak stotra श्री महावीराष्टक स्त्रोत

*श्री महावीराष्टक स्त्रोत* यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचित:, समं भान्ति ध्रौव्य-व्यय-जनि-लसन्तोऽन्तरहि ता:। जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटन-परो भानुरिव यो, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 1॥

samadhi bhavana teri chaya bhagavan aalochana समाधी भावना तेरी छत्रछाया भगवन

समाधि-भक्ति *समाधी भावना तेरी छत्रछाया भगवन* तेरी छत्रच्छाया भगवन्! मेरे शिर पर हो। मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो॥

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