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कालसर्प दोष (योग) और उपाय

आखिर कालसर्प दोष है क्या, कैसा होता है और इसका उपाय क्या है? यह समझना भी जरूरी है। पुराने ज्योतिष शास्त्रों में कालसर्प दोष का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन आधुनिक ज्योतिष में इसे पर्याप्त स्थान दिया गया है, लेकिन विद्वानों की राय भी इस बारे में एक जैसी नहीं है। मूलत: राहु और केतु और के मध्य सूर्यादि ग्रह होने कालसर्प दोष(योग)की स्थिति बनती है।




राहू का अधिदेवता 'काल' है तथा केतु का अधिदेवता 'सर्प' है। इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो 'कालसर्प' दोष कहते हैं। राहू-केतु हमेशा वक्री चलते हैं तथा सूर्य चंद्रमार्गी।

ज्योतिषी शास्त्रों के अनुसार कालसर्प दोष 12 प्रकार के बताए गए हैं-
1. अनंत
2. कुलिक
3. वासुकि
4. शंखपाल
5. पद्म
6. महापद्म
7. तक्षक
8. कर्कोटक
9. शंखनाद
10. घातक
11. विषाक्त
12. शेषनाग
कुंडली में 12 तरह के कालसर्प दोष होने के साथ ही राहू की दशा, अंतरदशा में अस्त-नीच या शत्रु राशि में बैठे ग्रह मारकेश या वे ग्रह जो वक्री हों, उनके चलते जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता है। इस योग के चलते जातक असाधारण तरक्की भी करता है, लेकिन उसका पतन भी एकाएक ही होता है।

1. बाल्यकाल में किसी भी प्रकार की बाधा का उत्पन्न होना। अर्थात घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी आदि का होना।

2. विद्या अध्ययन में रुकावट होना या पढ़ाई बीच में ही छूट जाना। पढ़ाई में मन नहीं लगना या फिर ऐसी कोई आर्थिक अथवा शारीरिक बाधा जिससे अध्ययन में व्यवधान उत्पन्न हो जाए।

3. विवाह में विलंब भी कालसर्प दोष का ही एक लक्षण है। यदि ऐसी स्थिति दिखाई दे तो निश्चित ही किसी विद्वान ज्योतिषी से संपर्क करना चाहिए। इसके साथ ही इस दोष के चलते वैवाहिक जीवन में तनाव और विवाह के बाद तलाक की स्थिति भी पैदा हो जाती है।

4. एक अन्य लक्षण कालसर्प दोष है संतान का न होना और यदि संतान हो भी जाए तो उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।

5. इस दोष के चलते घर की महिलाओं को कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं।

6. रोज घर में कलह का होना। पारिवारिक एकता खत्म हो जाना।

7. घर-परिवार मांगलिक कार्यों के दौरान बाधा उत्पन्न होना।

8. यदि परिवार में किसी का गर्भपात या अकाल मृत्यु हुई है तो यह भी कालसर्प दोष का लक्षण है।

9. घर के किसी सदस्य पर प्रेतबाधा का प्रकोप रहना या पूरे दिन दिमाग में चिड़चिड़ापन रहना 
कालसर्प दोष की शांति के उपाय निम्नलिखित कर सकते है:-

1. राहू तथा केतु के मंत्रों का जाप करें या करवाएं-

राहू मंत्र : ।। ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: ।।
केतु मंत्र : ।। ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:।।

नाग गायत्री के जाप करें या करवाएं-

सर्प मंत्र : ।। ॐ नागदेवताय नम: ।।
नाग गायत्री मंत्र : ।। ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।

2.ऐसे शिवलिंग (शिव मंदिर में) जहां‍ शिवजी पर नाग न हो, प्रतिष्ठा करवाकर नाग चढ़ाएं।
राहू-केतु के असर को खत्म करने के लिए रामबाण है- पाशुपतास्त्र का प्रयोग।

3. पितृ शांति का उपाय करें।

4. घर में फिटकरी, समुद्री नमक तथा देशी गाय का गौमूत्र मिलाकर रोज पोंछा लगाएं तथा गुग्गल की धूप दें।

5. नागपंचमी को सपेरे से नाग लेकर जंगल में छुड़वाएं।

6. घर में बड़ों का आशीर्वाद लें तथा किसी का दिल न दुखाएं और न अपमान करें।
7. दुर्गा पाठ करें या करवाएं।

8. भैरव उपासना करें।

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