शुद्ध धर्म ही जीव का आत्मकल्याण कर सकता है - प्रवर्तक पूज्य गुरुदेव श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा

शुद्ध धर्म ही जीव का आत्मकल्याण कर सकता है


- प्रवर्तक पूज्य गुरुदेव श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. 🙏🏻


स्थानक मे धर्मसभा में पूज्य श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि अनादिकाल से जीव सुमार्ग , सन्मार्ग के लिए संसार में परिभ्रमण कर रहा है , दुःख उठा रहा है। व्यक्ति को गलत मार्ग पसंद है , इसलिए वह दुःखी हो रहा है। तीर्थंकर भगवान द्वारा बताया गया है कि धर्म ही शुद्ध है , यही धर्म जीवन का आत्मकल्याण कर सकता है। व्यक्ति यदि सन्मार्ग पर चलेगा तो दुखों का अंत आएगा तथा सुखी होगा। आवश्यक सूूत्रों में नमोचौविसाए पाठ में धर्म की श्रेष्ठता बताई गई है। इनकी अच्छाइयों को सुन कर अपने हृदय में विश्वास जमाना है। इस धर्म के प्रति श्रृद्धा और विश्वास बढ़ाऐंगे तो सुनना , जानना हितकारी होगा। आपने आगे बताया कि जिस प्रकार आज खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट हो रही है , उसी तरह आज धर्म मे भी मिलावट हो रही है। मिलावटी खाने-पीने से शरीर बिगड़ेगा , शक्ति घटेगी , उसी तरह मिलावटी धर्म सुनने से जीवन बिगड़ता है । अपरिग्रह , पाप से छुड़ाने , अशौर्य और सत्य अब्रह्मचर्य की बात हो वहां धर्म शुद्ध होता है। ऐसे धर्म का पालन करने से आत्मा शुद्ध होती है। धर्म का जितना पालन करता है वह सब दुखों से रहित मुक्ति को प्राप्त करता है। आत्मा मलीन है , पापरूपी जल से धोने पर वह शुद्ध नहीं हो सकती। पाप ही आत्मा को बाहर - भीतर से अपवित्र बनाता है। भगवान स्वयं अहिंसा का पालन करते है। तीर्थंकर छदमस्त हो तो भी मन , वचन , काया से अहिंसा धर्म का पालन करते है। शल्य दो प्रकार के होते है द्रव्य शल्य , भाव शल्य। द्रव्य शल्य शरीर को पीड़ा देने वाले है। भाव शल्य मन , वचन , काया की बुरी प्रवत्ति मिटाने वाला है। भौतिक पदार्थो की कामना करने वाला निदान शल्य है , यह शल्य साधु-साध्वी , श्रावक-श्राविका सभी करते है। निदान दुःख शल्य है , मोक्ष मार्ग पर आगे नहीं बढ सकते है।

        पूज्य श्री संयतमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी जी जब विचरण कर रहे थे वे स्वयं तीर्थंकर थे उस समय अन्य केवल , मनपर्यायज्ञानी , अभीज्ञानी , 14 पूर्वीधारी भी थे परंतु आज ये कोई भी नहीं है। वर्तमान में कोई विशिष्ट ज्ञानी नहीं है। वर्तमान में विश्वास के लायक केवल आगम ही भगवान की वाणी है। गौतम स्वामी भी विचरण के समय आगम को आगे रखते थे। जिस प्रकार देश संविधान के अनुसार चलता है उसी तरह हमारा यह जिन शासन आगम के अनुसार चलेगा। मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए आगम पर श्रृद्वा रखना जरूरी है। आगम लौकिक और लोकोत्तर दो प्रकार का है। गणित विज्ञान लौकिक आगम है। भगवान का शासन लोकोत्तर आधार पर चल रहा है। भगवान केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद ही देशना देते है। केवलज्ञानी एक समान कहते है। एक-दूसरे तीर्थंकर में विरोधाभास नही होता , छदमस्त में विरोधाभास होता है। सर्वज्ञ होने के बाद केवल ज्ञानी समान होते है। सर्वज्ञ कभी भी भ्रमित नहीं होते। इनकी वाणी विश्वसनीय है। सर्वज्ञ में क्रोध , मान , माया , आदिकषाय नहीं होता है। चरित्र में परिग्रह घटाने की बात कही गई है। परिग्रह के पालन से व्यक्ति पागल हो जाता है, गिर जाता है। परिग्रह की भावना हो तो व्यक्ति ऊपर आ सकता है। मंगल है अपरिग्रह भाव , पाप का रंग मिटाता है।

धर्म सभा में श्रीमती रश्मि जी मेहता ने 5 उपवास , आयुषी जी घोडावत ने 5 उपवास, श्रीमती राजकुमारी जी कटारिया , राजपाल जी मुणत ने 7 उपवास लगभग 13 तपस्वियों ने 4 उपवास के प्रत्यायन ग्रहण किये। प्रवर्तक श्री जी ने सभी से की प्रतिकमण सीखने , माधवाचार्य परीक्षा मण्डल भाग-1 का ज्ञान सीखने का आव्हान किया।

सभा का सफल संचालन केवल जी कटकानी ने किया।


समाचार प्रदाता -: श्री सुभाष जी ललवानी

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