Speech on samvatsari in hindi पर्युषण पर्व पर हिंदी स्पीच Slogans on Samvatsari

 

Speech on samvatsari in hindi| पर्युषण पर्व पर हिंदी स्पीच| Slogans on Samvatsari




    एक से बड़े रत्नों का जिसमे समाया सार है

चार खंड के अधिपति ने भी समझा जिसका सार है
छोड़ के धन संपत्ति, छोड़ दिया जिसने मायाजाल है
जिनकी गाथाओं से गौरान्वित होता पूरा जैन समाज है।

श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार करने के प्रश्चात उन्ही की आज्ञा में विचरण करने वाले गुरु भगवंतों के चरणों मे कोटि कोटि वंदन।

हमने पिछले जन्म की पुन्यवानी ही है कि हमे मनुष्य भव मिला, जैन धर्म मिला, और महापुरूषों का सानिध्य प्राप्त हुआ। और इस पर्युषण पर्व में धर्म आराधना करने का अपनी सारे सांसारिक कार्यो को छोड़ पापो को धोने का शुभ अवसर प्राप्त हो सका।

सव्वासरी पर्व हमारे जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व है या यह कह तो भी अतिशयोक्ति नही होगी कि पर्युषण पर्व सब पर्वो को राजा है और तप त्याग तपस्या से मलिन आत्मा को पवित्र करने की सबसे कारगर ओषधी है।

क्षमा वीरस्य भूषणं
अर्थात क्षमा वीरो को आभूषण है, कायर का व्यवहार नही
क्योंकि क्षमा करना हर किसी के बस की बात नही।
क्षमा वो ही कर सकता है जिसका दिल बड़ा हो, और जो जीव हुलुकर्मी हो।

पक्षी कहता है गगन बदल गया है
बुलबुल कहती चमन बदल गया है
भगवान की वाणी वही की वही
पंचम आरे में जीवो को मन बदल गया है।

आज हम सब एक दूसरे से क्षमा मांगते है और पिछले पापो की आलोचना करते है पर क्या हम हम उन लोगो से क्षमा मांग पाते है जिसका दिल हमने वास्तव में कभी दुखाया हो या जिससे हमने कुछ छिपाया हो तो आज सबसे पहले उनसे क्षमा माँगने का प्रण लेते है और अपने पापो की सही रूप में आलोचना करते है और यह प्रण लेते है किसी जीव का बनते कोशिश दिल नही दुखायेंगे और सब जीवो का क्षमा दान देंगे।

दिन वो आज आया है
सब जीवो को खमाने का वक़्त पास आया है
मिच्छामि दुक्कड़ करते हम 84 लाख जीवयोनि से
खमतखावना कर पापो को धोने का पर्व समत्सवरी आया है।

धर्म जीवन की डूबती नोका को पार कराने वाला है, इसलिए धर्म सिर्फ 8 दिन नही बल्कि हर दिन करे ताकि आत्मा धर्म से प्रकाशमय रहे और पापो से दूर रहे।

संसार गहरा समुन्द्र है, डूबते हुए जाना है
ले लो धर्म की शरण भवजल को मिला किनारा है
झूठे रिश्ते नाते स्वार्थ के नज़ारा है
पंचम आरे में कौन सुख से रह पाया है
धर्म का मार्ग प्रशस्त है मिला कितनो को किनारा है
अहिंसा की पगडंडी हर रोज़ यहाँ नया सवेरा है
अम्बर मुस्कुराता है, धरती पाल बिछाती है
धर्म की पगडंडी पे कोयल सदा मुस्कुराती है।

क्षमा जीवन का श्रृंगार है
मुक्ति पथ पर बढ़ने का पतवार है
क्षमा सतगुणो का भंडार है
क्षमा मोक्ष मार्ग की राहगार है।

क्षमा वीरो का आभूषण है
कायर का व्यवहार नहीं
क्षमा आत्मा की अलौकिक ज्योति है
दावानिल अग्नि की ज्वाला नही।

क्षमा दो, क्षमा लो
क्षमा जीवन का श्रृंगार है
क्षमा बिकती नही बाज़ारो में
क्षमा रहती मानव के ह्रदय रूपी संसार मे।

No comments:

Post a Comment