Featured Post
advertisement
मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का इतिहास व कुलदेवियाँ | Maidh Kshatriya Swarnkar Samaj History |Kuldevi
- Get link
- X
- Other Apps
मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का इतिहास व कुलदेवियाँ | Maidh Kshatriya Swarnkar Samaj History |Kuldevi
Maidh Kshatriya Swarnkar Samaj History in Hindi : सुनार जाति राजस्थान के प्रत्येक गांव, कस्बे और शहर में रहती है | सुनार जाति का मुख्य व्यवसाय सोने, चाँदी आदि धातुओं के गहने घड़ना है | कुछ सुनार मीनाकर और जड़ाई का काम करते हैं | सुनारों का दुसरा नाम सोनीया स्वर्णकार है | सुनार अपने पूर्वजों के धार्मिक स्थान की कुलपूजा करते है। यह जाति हिन्दूस्तान की मूलनिवासी जाति है। मूलत: ये सभी क्षत्रिय वर्ण में आते हैं इसलिये ये क्षत्रिय सुनार भी कहलाते हैं। आज भी यह समाज इस जाति को क्षत्रिय सुनार कहने में गर्व महसूस करता हैं। राजस्थान में प्रायः अक्षय तीज पर बच्चों व बच्चियों के नाक व कान छेदते हैं | इसमें आगे चलकर इनका जेवर घड़ने का दृष्टिकोण रहता है |
प्रिय पाठक ! कृपया ध्यान दें –
आप हमें व्हाट्सएप पर मैसेज कर अपनी कुलदेवी का नाम जान सकते है
हिन्दू धर्म सहित अन्य धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाली विभिन्न समाजों की कुलदेवियों के बारे में Research जारी रखने के लिए JainNews.in Team को आपके Support की आवश्यकता है। आपकी छोटी सी भी सहायता इस रिसर्च को एक कदम आगे बढ़ा सकती है। Support on Paytm or Phonepe or GooglePay : “+91 8962324213 “
स्वर्णकार / सुनार शब्द की व्युत्पत्ति :-
सुनार शब्द मूलत: संस्कृत भाषा के स्वर्णकार का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है स्वर्ण अथवा सोने की धातु या सोने जैसी फसल का उत्पादन करने वाला। यह क्षत्रिय जाति है जो अन्याय तथा अत्याचार के विरूद्ध लड़ती है। इस जाति में अनेक महापुरूषों ने जन्म लिया है। यह इतिहास की वीर तथा महान् जाति है। प्रारम्भ में निश्चित ही इस प्रकार की निर्माण कला के कुछ जानकार रहे होंगे जिन्हें वैदिक काल में स्वर्णकार कहा जाता होगा। बाद में पुश्त-दर-पुश्त यह काम करते हुए उनकी एक जाति ही बन गयी जो आम बोलचाल की भाषा में सुनार कहलायी। जैसे-जैसे युग बदला इस जाति के व्यवसाय को अन्य वर्ण के लोगों ने भी अपना लिया और वे भी स्वर्णकार हो गये। सुनार शाकाहारी, सुँदर, चरित्रवान, साहसी तथा पूरक शक्ति से सिद्ध होता है। जबकि स्वर्णकार दुर्भाग्यवश किसी अन्य जाति का भी हो सकता है। अन्य जाति का व्यक्ति सुनार जाति में उसी प्रकार पहचाना जाएगा जैसे हँसो में अन्य पक्षी पहचाना जाता है। गुणों से ही जाति की पहचान होती है। जाति से ही गुणो का परिचय मिलता है।
इतिहास :-
लोकमानस में प्रचलित जनश्रुति के अनुसार सुनार जाति के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि त्रेता युग में परशुराम ने जब एक-एक करके क्षत्रियों का विनाश करना प्रारम्भ कर दिया तो दो राजपूत भाइयों को एक सारस्वत ब्राह्मण ने बचा लिया और कुछ समय के लिए दोनों को मैढ़ बता दिया जिनमें से एक ने स्वर्ण धातु से आभूषण बनाने का काम सीख लिया और सुनार बन गया और दूसरा भाई खतरे को भाँप कर खत्री बन गया और आपस में रोटी बेटी का सम्बन्ध भी न रखा ताकि किसी को इस बात की कानों-कान खबर न लग सके कि दोनों ही क्षत्रिय हैं। आज इन्हें मैढ़ राजपूत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये वही राजपूत है जिन्होंने स्वर्ण आभूषणों का कार्य अपने पुश्तैनी धंधे के रूप में चुना है।
लेकिन आगे चलकर गाँव में रहने वाले कुछ सुनारों ने भी आभूषण बनाने का पुश्तैनी धन्धा छोड़ दिया और वे खेती करने लगे।
राजस्थान में मुख्य रूप से तीन प्रकार के सुनार हैं-
1. मेढ़ सुनार :-
ये अपनी उत्पत्ति देवी के मैल से बताते हैं। कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब राजा मलूक राज्य करता था तब बागेश्वरी देवी ने कनकसुर राक्षस को वरदान द्वारा सोने का बना दिया था। वह देवी से शादी को तैयार हो गया। इसलिए देवी ने उसे मारने के लिए अपने दाहिने हाथ के मैल से एक आदमी बनाया और उस राक्षस को मारने का आदेश दिया लेकिन वह डरपोक निकला। महेश्वरी जाति उसी की वंशज है। फिर देवी ने बांये हाथ के मैल से दुसरा आदमी जीवित किया। वह भी कायर व डरपोक निकला उसकी औलाद में न्यारिया सुनार है।
आखिर में देवी ने अपनी छाती के मैल से तीसरा आदमी सिकसू नाम का पैदा किया वह राक्षस मारने को तैयार हो गया। उसे देवी ने वरदान दिया और कहा कि इसकी औपनी बनाकर कनकासुर दैव्य के नखों को उजला कर दें। इससे प्रसन्न होकर सम्पूर्ण शरीर चमकदार बनवाने को राजी होगा फिर तुम मेरे पास आना। उसने वैसा ही किया और सब हाल देवी से आकर कहा। देवी ने सोचा सीसा सोने को खा जाता है। जमीन में से सीसा निकाला और कहा कि इसके कड़े और बगड़ राक्षम के अंग-अंग में पहनाकर आग में बैठाकर धोकनी से खूब धोकना ताकि वह उसमें भस्म होगा। उसने ऐसा ही किया। उसका सम्पूर्ण शरीर पिघलकर सोना हो गया। उसको सुनार अपने घर रख कर देवीजी के समक्ष उपस्थित हुआ और कहा कि राक्षम को मार आया हूँ। सोने का जिक्र नहीं किया मगर देवी को सब कुछ जानकारी थी। इसलिए शाप दिया कि तू जन्म भर चोरियाँ करता रहेगा फिर भी तेरा पूरा नहीं पड़ेगा। यह सुनकर उसने कहा कि क्या दुश्मन को मारने का यही इनाम है ? देवी को दया आ गई और उसे चौकी पर बैठाकर अन्दर चली गई परन्तु वह बैठा-बैठा परेशान हो गया। आखिर उस व्यक्ति को वहाँ बैठा दिया जो दाहिने हाथ के मैल से पैदा हुआ था। उसे दासी ने एक थाल में धन लाकर दिया। जब सिकसू को इनका पता चला तो उसने कहा कि तूने दूसरे का हक़ लिया इसलिए तेरे पास धन तो रहेगा मगर दिवाला निकलता रहेगा। यह उत्पत्ति ‘मेवना’ पहाड़ में हुई जो बूंदी और मेवाड़ की सीमा पर है। सिकसू की औलाद सुनार कहलाई। इनमे श्रीमाली ब्राह्मण और भी मिल गए और यह काम सिखकर करने लगे। इनके वंशज बामणिया सुनार कहलाते हैं।
मेढ़ सुनारों का धर्म शाक्त है। ये शराब व माँस का उपयोग करते हैं। इस जाति में नाता प्रथा प्रचलित है। विवाह व नाता में केवल चार गोत्र ही टालते हैं। इनमें फेरे केवल चार होते हैं। नाता बेवा के पीहर में होता है। नाता करने से पहले ससुराल वालों की फारगती होना आवश्यक है वरना वे लोग जाति, पंचायत व अदालत में कार्यवाही के अधिकारी हो जाते हैं। नाता केवल स्त्री अपनी स्वेच्छा से नहीं कर सकती है। नाता शनिवार की रात्रि को होता है। इनमें निम्न गौत्र हैं -कटारिया, कुलथा, जवड़ा, जालू, ढांवर, तूनघर, तोसावड़, दूसलिया, देवाल, परवाल, अगरोया, आसट, बदला, बाथरा, बीबाल, भंवर, भामा, माहेच, मांडण, रोड़ा, सोनालिया, सारडीवाल, सीदड़ आदि हैं। मेढ़ सुनारों में से कुछ लोग भातड़िया सुनार कहलाते हैं जो हमेशा गांवों में फिरा करते हैं। औजार सब थैले में रखकर घूमते फिरते हैं। एक जगह बैठकर दूकान नहीं लगाते। यदि सुनार सामने या दांये बांये मिल जाता है तो अपशगुन समझकर लोग कुछ समय के लिए वहीं बैठ जाते हैं।
2. बामणिया सुनार :-
यह जाति श्री माली ब्राह्मण और राजपूतों से भीनमाल में बनी थी। श्रीमालियों ने उनसे गहना घड़ना सीखा। जिन लोगों ने यह काम सीखा उन्हें अन्य श्रीमालियों ने अपनी जाति के बाहर कर दिया। यह ब्राह्मण होने से मेढ़ सुनारों में भी नहीं मिल सकते थे। इसलिए इन्होनें बामनिया सुनार की अलग जाति बनाई। इनके गोत्र है- वसिष्ट, हरितस, पारासर, गौतम, भारद्वाज, आत्रेय, कौशिक, काश्यप, कोकासुर। एक गोत्र में कई खांपें निकली हैं। इनमे कुछ राजपूत भी मिल गए। इनके गोत्र हैं- पडियारिया, सोलंकी, परमार, भाटी, देवल, दईया, चौहान और राठौड़।
बामनिया सुनारों के रीति-रिवाज मेढ़ सुनारों से मिलते-जुलते हैं। इनमे नाता प्रथा प्रचलित हैं। ये शराब व माँस से परहेज करते हैं। इनका धर्म शैव, शाक्त और वैष्णव है। इनका इष्ट माताजी का है। मेढ़ सुनार इनसे कारीगरी में अच्छे होते हैं। मेढ़ सुनारों व बामनिया सुनारों में भोजन व्यवहार है मगर बेटी व्यवहार नहीं है।
3. न्यारिया :-
यह जाति, धूल से धोया सुनार, देवी के बांये हाथ के मैल से उत्पन्न हुई थी। यह थाली में धूल भी धोया करते हैं। राख भी छानते हैं जिससे इनको चाँदी व सोने के रेशे मिल जाते हैं। इनके रीति-रिवाज सुनारों से मिलते हैं। यह अपने साथ औजार गलाने और फूंकने का सामान रखते हैं। वास्तव में न्यारिये मुस्लिम सुनार कहे जा सकते हैं। आजकल सुनारगिरि का धन्धा न चलने के कारण यह लोग चाँदी का काम करते हैं।
मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की कुलदेवियाँ Maidh Kshatriya Swarnkar Samaj Kuldevi List
Gotra wise Kuldevi List of Maidh Kshatriya Swarnkar Samaj : मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की गोत्र के अनुसार कुलदेवियों का विवरण इस प्रकार है –
प्रिय पाठक ! कृपया ध्यान दें –
आप हमें व्हाट्सएप पर मैसेज कर अपनी कुलदेवी का नाम जान सकते है
हिन्दू धर्म सहित अन्य धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाली विभिन्न समाजों की कुलदेवियों के बारे में Research जारी रखने के लिए JainNews.in Team को आपके Support की आवश्यकता है। आपकी छोटी सी भी सहायता इस रिसर्च को एक कदम आगे बढ़ा सकती है। Support on Paytm or Phonepe or GooglePay : “+91 8962324213 “
जिन कुलदेवियों व गोत्रों के नाम इस विवरण में नहीं हैं उन्हें शामिल करने हेतु नीचे दिए कमेण्ट बॉक्स में विवरण आमन्त्रित है। (गोत्र : कुलदेवी का नाम )। इस Page पर कृपया इसी समाज से जुड़े विवरण लिखें।
प्रिय पाठक ! कृपया ध्यान दें –
आप हमें व्हाट्सएप पर मैसेज कर अपनी कुलदेवी का नाम जान सकते है
हिन्दू धर्म सहित अन्य धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाली विभिन्न समाजों की कुलदेवियों के बारे में Research जारी रखने के लिए JainNews.in Team को आपके Support की आवश्यकता है। आपकी छोटी सी भी सहायता इस रिसर्च को एक कदम आगे बढ़ा सकती है। Support on Paytm or Phonepe or GooglePay : “+91 8962324213 “
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment