रात्रि भोजन क्यों नहीं करना चाहिए जानिए सूर्यास्त के बाद क्यों नहीं खाना चाहिए

मानव शरीर अन्न का कीड़ा है, मानव अन्न के बिना जीवित नहीं रह सकता है। अत: मनुष्य को भोजन करना अनिवार्य है, किन्तु कब करना, कब नहीं करना, कितना करना, इसका वर्णन इस अध्याय में है।



1. भोजन क्यों करते हैं ?


क्षुधा की वेदना को दूर करने के लिए। 

अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए। 

जिससे हम जीवित रह सकें। 

दूसरों की सेवा करने के लिए। 

संयम पालन करने के लिए।

दस धर्मों का पालन करने के लिए। (मू., 479)

 

2. भोजन कब करना चाहिए? 

भोजन दिन में करना चाहिए।

 

3. रात्रि में भोजन क्यों नहीं करना चाहिए? 

सूर्य की किरणों में Ultraviolet (अल्ट्रावायलेट) एवं Infrared (इन्फ्रारेड) नाम की किरणें रहती हैं। इन किरणों के कारण दिन में सूक्ष्म जीवों की उत्पति नहीं होती है। सूर्य के अस्त होते ही रात्रि में जीवों की उत्पत्ति प्रारम्भ हो जाती है। यदि रात्रि में भोजन करते हैं, तब उन जीवों का घात हो जाता है, जिससे हमारा अहिंसा धर्म समाप्त हो जाता है एवं पेट में भोजन के साथ छोटे-छोटे जीव-जन्तु पहुँच जाते हैं, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। 


4. क्या रात्रि में लाईट जलाकर भोजन कर सकते हैं ? 

नहीं। क्योंकि यदि दिन में लाईट जलाते हैं, तो लाईट के आसपास कीडे दिखाई नहीं देते हैं, क्योंकि दिन में कीड़े कम उत्पन्न होते हैं और वे सूर्य प्रकाश के कारण यहाँ-वहाँ छिप जाते हैं। रात्रि में लाईट जलाते हैं तब और भी ज्यादा कीड़े उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार रात्रि में लाईट जला कर भी भोजन नहीं करना चाहिए। दिन में लाईट अर्थात् सनलाईट Sunlight (सूर्य प्रकाश) में ही भोजन करना चाहिए। 


5. वर्तमान विज्ञान रात्रिभोजन न करने के बारे में क्या कहता है ? 

वर्तमान विज्ञान का कहता है कि सूर्य प्रकाश में ही भोजन का पाचन होता है। अत: दिन में ही भोजन करना चाहिए। भोजन करके शयन करने से भोजन का पाचन सही नहीं होता है। इससे शयन के 3 या 4 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए।

6. आयुर्वेद रात्रिभोजन करने का समर्थन करता है कि नहीं ? 

नहीं। आयुर्वेद में लंघन (उपवास) भी कराते हैं, तब उसकी पारणा भी दिन में ही कराते हैं एवं वैद्य भी औषध दिन में तीन बार लेने के लिए कहता है, प्रात:, मध्याह्न एवं संध्या की। रात्रि में नहीं।

 

7. प्राकृतिक चिकित्सा में रात्रिभोजन का समर्थन है कि नहीं ? 

प्राकृतिक चिकित्सा में रात्रि में मात्र पेय आहार देते हैं अन्न आदि नहीं। 


8. जैनधर्म के अलावा अन्य धमों में रात्रिभोजन का निषेध है या नहीं ? 

जैनधर्म के अलावा अन्य धर्मो में रात्रिभोजन का निषेध किया है


1. महाभारत के शान्तिपर्व में कहा है -


चत्वारि नरक द्वारं प्रथमं रात्रि भोजनम्॥

परस्त्री गमनं चैव सन्धानानन्तकायिकम्॥

अर्थ - नरक जाने के चार द्वार हैं - पहला रात्रिभोजन, दूसरा परस्त्री सेवन, तीसरा सन्धान अर्थात् अमर्यादित अचार का सेवन करना एवं चौथा अनन्तकायिक अर्थात् जमीकंद खाना। 


2. मार्कण्डेय पुराण में कहा है -


अस्तंगते दिवानाथे आपो रुधिर मुच्यते।

अन्नं मांस समं प्रोक्ततं मार्कण्डेय महिषर्षणा ॥

अर्थ - सूर्य के अस्त होने के बाद जल के सेवन को खून के समान एवं अन्न के सेवन को माँस के समान कहा है। 


3. मार्कण्डेय पुराण में और भी कहा है -

मृते स्वजन मात्रेऽपि सूतकं जायते किल।

अस्तंगते दिवानाथे भोजन कथ क्रियते॥

अर्थ - स्वजन का अवसान हो जाता है तो सूतक लग जाता है, जब तक शव का संस्कार नहीं होता तो भोजन नहीं करते हैं। जब सूर्यनारायण अस्त हो गया तो सूतक लग गया अब क्यों भोजन करेंगे। अर्थात् नहीं करेंगे, नहीं करना चाहिए। 


4. ऋषीश्वर भारत में कहा है -


मद्यमाँसाशनं रात्रौ भोजनं कंद भक्षणम्।

ये कुर्वन्ति वृथा तेषां, तीर्थयात्रा जपस्तपः॥

वृथा एकादशी प्रोत्ता वृथा जागरणं हरे: ।।

वृथा च पुष्करी यात्रा वृथा चान्द्रायणं तपः ॥

अर्थ - मद्य, माँस का सेवन, रात्रि में भोजन एवं कंदमूल भक्षण करने वाले के तप, एकादशीव्रत, रात्रिजागरण, पुष्कर यात्रा तथा चन्द्रायण व्रतादि निष्फल हैं।


 9. रात्रि भोजन के त्याग में अन्न का त्याग है या सभी पदार्थों का ? 

रात्रि भोजन के त्याग का अर्थ रात्रि में चारों प्रकार के आहारों का त्याग अर्थात् खाद्य, पेय, लेह्य और स्वाद्य।


खाद्य - रोटी, बाटी, मोदक आदि।

पेय - दूध, पानी, शर्बत, ठंडाई आदि। 

लेह्य - रबड़ी, आम का रस, कुल्फी आदि।

स्वाद्य - लौग, इलायची, सौफ आदि।


10. जिसका रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग है, उसे क्या फल मिलता है ?

जो रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है उसे एक वर्ष में छ: माह के उपवास का फल मिलता है।


11. भोजन कितना करना चाहिए ?

सभी डॉक्टर, वैद्य यही कहते हैं कि खूब भूख लगने पर, भूख से कम खाना चाहिए। मूलाचार ग्रन्थ में आचार्य श्री वट्टकेर स्वामी ने कहा है कि आधा पेट तो भोजन से भर लेना चाहिए। तीसरा भाग जल से भर लेना चाहिए एवं एक भाग खाली रखना चाहिए।

इसी प्रकार गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी ने मूकमाटी में कहा है-


आधा भोजन कीजिए, दुगुणा पानी पीव।

तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी, वर्ष सवा सौ जीव॥


12. रात्रि में भोजन न करने से क्या लाभ हैं ?

रात्रि में भोजन न करने से अनेक लाभ हैं

रात्रि में भोजन न करने से जीवों का घात नहीं होता है, अत: हम पाप से बच जाते हैं।

अनेक प्रकार की बीमारियाँ नहीं होती हैं, जिससे आपका धन भी बच जाता है, क्योंकि बीमार होने से आपका धन डॉक्टर एवं दवा विक्रेता या दवा निर्माता के यहाँ जाता है।

घर में शांति रहती है, क्योंकि आप रात्रि में भोजन करेंगे तो महिला वर्ग को रात्रि में बनाना पडेगा और उसके बाद बरतन आदि साफ करने पड़ेंगे। अधिक रात्रि होने से निद्रा भी आने लगती है, अत: गुस्सा आना स्वाभाविक है। अब वह गुस्सा कहाँ उतरेगा ? आपके ऊपर या बच्चों के ऊपर या फिर घर की सामग्री के ऊपर। अत: घर में शांति चाहते हो तो दिन में भोजन करना चाहिए।

 

13. रात्रि में भोजन करने से क्या-क्या हानियाँ होती हैं ?

पेट में अनेक प्रकार के जीव पहुँच जाते हैं, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं।

जैसे - मक्खी जाने से वमन हो जाता है। मकड़ी का अंश भी जाने से कोढ़ हो जाता है। जू (जुआँ) जाने से जलोदर रोग हो जाता है। बाल जाने से स्वर भंग हो जाता है। बिच्छू जाने से तालु भंग हो जाता है।

 

14. जैनधर्म के अनुसार रात्रि में भोजन करने वाले कहाँ जाते हैं ?


उलूक - काक - माजरि, - गृध - शम्वर - सूकरा:।

अहि - वृश्चिक - गोधाश्च, जायन्ते निशिभोजनात्॥


अर्थ - रात्रि में भोजन करने वाले उल्लू, कौआ, बिल्ली, गृध्र (गिद्ध), भेड़िया, सुअर, सर्प, बिच्छू, मगरमच्छ आदि पर्याय में जाते हैं।


15. रात्रि भोजन त्याग के दोष (अतिचार) कौन-कौन से हैं ?

रात्रि भोजन त्याग के दोष निम्नलिखित हैं - 


दिन के समय अंधकार में बना भोजन करना।

रात्रि का बना भोजन दिन में करना।

रात्रि भोजन का त्याग करके, समय पर भोजन न मिलने से मन में सोचना कि मैंने क्यों रात्रि भोजन का त्याग कर दिया।

रात्रि में चारों प्रकार के आहारों का त्याग नहीं करना।

रात्रि में पीसा, कूटा, छना हुआ पदार्थ खाना।

दिन के प्रथम और अंतिम घडी (24 मिनट) में भोजन करना।


No comments:

Post a Comment