संतरो की नगरी नागपुर में पधारे संत शिरोमणि महाश्रमण
अहिंसा यात्रा का नागपुर में सानन्द मंगल प्रवेश
यथार्थ को जानने का प्रयास हो - आचार्य महाश्रमण
पूज्यप्रवर ने प्रदान की दुराग्रह मुक्त बनने की प्रेरणा
नागपुर, महाराष्ट्र
सद्भावना, नैतिकता एवं ईमानदारी के संदेशों से जन मानस को पवित्र बनाने वाले अहिंसा यात्रा प्रणेता पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी का आज नागपुर में पावन पदार्पण हुआ। प्रातः सुर्दाेदय की बेला में महालगांव के वेयर हाउस से पूज्य गुरुदेव ने मंगल विहार किया। अणुव्रत प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी के पदार्पण के लगभग 50 वर्षों पश्चात तेरापंथ के ग्याहवें आचार्यश्री महाश्रमण जी के नागपुर पदार्पण पर सकल जैन समाज के साथ-साथ जैनेत्तर समाज में भी विशेष उत्साह-उमंग दिखाई दे रहा था। संतरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध नागपुर आज मानों अहिंसा यात्रा के स्वागत में भक्ति के रंग में रंग गया था। शहर में स्थान-स्थान पर स्वागत में होर्डिंग्स और स्वागत को आतुर नागपुरवासी आचार्यप्रवर का जयघोषों से अभिनंदन कर रहे थे।
नागपुर में लाॅकडाउन एवं कोविड-19 के चलते आचार्यश्री के नगर पदार्पण पर प्रशासनिक निर्देशों का भी पुरी जागरूकता से पालन किया जा रहा था। पूर्व निर्धारित व्यवस्था अनुसार विहार में सीमित संख्या में ही कार्यकर्ता उपस्थित थे। जुलुस का उपक्रम नहीं रखते हुए मास्क एवं सोश्यल डिस्टेंसिंग के साथ चयनित स्थानों पर ही खडे़ होकर श्रद्धालु शांतिदूत का स्वागत कर रहे थे। मार्ग में तेरापंथ भवन में समक्ष पूज्यप्रवर ने मंगलपाठ ने मंगलपाठ फरमाया। लगभग 10.2 किलोमीटर विहार कर पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रवास हेतु अणुव्रत भवन में पधारे।
मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा व्यक्ति यथार्थ को जानने का प्रयास करें, स्वयं सत्य खोजें। व्यक्ति का यह प्रयास रहे कि मैं सत्य को जानूँ, सच्चाई का साक्षात्कार करूं। हमारा ज्ञान मिथ्या नहीं होना चाहिए। जो दूसरों से जाना जाता है वह परावलंबित, परोक्ष ज्ञान है। जो स्वयं जाना जाता है, प्रत्यक्ष जाना जाता है उसमें फिर संशय का स्थान नहीं रहता। आंखों से जो देखा उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहा जा सकता है पर अगर गहराई में जाए तो इंद्रियां माध्यम मात्र है। जो सीधा आत्मा के द्वारा हो वह इस संदर्भ में प्रत्यक्ष ज्ञान कहा जा सकता है। अवधिज्ञान, केवलज्ञान आदि अतींद्रिय ज्ञान आत्मा की प्रत्यक्षता से जुड़े हुए हैं। केवलज्ञान के बाद कुछ भी अज्ञात नहीं रहता।
पूज्यप्रवर ने आगे कहा कि अध्यात्म और विज्ञान दो छोर हैं परंतु सच्चाई के बिंदु पर यह दोनों मिल जाते हैं। विज्ञान में सच्चाई की खोज की जाती है तो अध्यात्म भी सत्य से साक्षात्कार की प्रक्रिया है। आज विज्ञान द्वारा कितनी सूक्ष्म बातों को जाना गया है। असंभव लगने वाली बातें भी विज्ञान के द्वारा संभव नजर आती है। दुराग्रह रूपी बादल जब हट जाते हैं तब सत्य का सूर्य उदित होता है। सच्चाई की खोज में दुराग्रह बाधा का कार्य करता है। व्यक्ति चिंतन को दुराग्रह मुक्त कर सत्य की खोज में बढ़े। जीवन में अच्छे ग्रंथों का अध्ययन, गुरुजनों से यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति का प्रयास करें यह काम्य है।
प्रसंगवश आचार्यश्री ने कहाकि आज नागपुर में हमारा आना हुआ है। गुरुदेव श्री तुलसी के नागपुर पदार्पण के पांच दशक बाद हम यहां आए हैं। यहां की जनता में खूब धार्मिक भावना बढ़ती रहे, सभी में नैतिक मूल्यों के प्रति रुझान बढ़े। आचार्य प्रवर की प्रेरणा से नागपुरवासियों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया।
कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने शांतिदूत के स्वागत में विचाराभिव्यक्ति दी।
ज्ञातव्य है कि वर्तमान में पूज्य प्रवर के प्रवचन आदि। कार्यक्रम वर्चुअल रूप से ही आयोजित हो रहे हैं।
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