Featured Post

लक्ष्य निर्धारित कर सम्यकत्व के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष का मार्ग मिलेगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा.

लक्ष्य निर्धारित कर सम्यकत्व के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष का मार्ग मिलेगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा. 

advertisement

महावीर भगवान् - जीवन परिचय

 

महावीर भगवान् - जीवन परिचय


१. चयवन - प्राणत देवलोक
२. गर्भ प्रवेश तिथि - आषाढ़ शुक्ला ६
३. गर्भ साहरण तिथि - आश्विन कृष्णा १३
४. जन्म तिथि - चैत्र शुक्ला १३
५. जन्म स्थान - क्षत्रिय कुण्डपुर
६. नाम - वर्धमान,
महावीर,
देवार्य,
ज्ञातनंदन,
वीर,
सन्मति,
७. वर्ण - स्वर्ण ( तप्त स्वर्ण के समान )
८. चिन्ह - सिंह
९. पिता का नाम - सिद्धार्थ राजा
१०. माता का नाम - त्रिशलादेवी
११. मामा का नाम - गणतंत्र अध्यक्ष चेटक
१२. वंश - इक्षवाकु
१३. गोत्र - काश्यप
१४. पत्नी का नाम - यशोदा
१५. पुत्री का नाम - प्रियदर्शना
१६. भाई का नाम - नन्दीवर्धन
१७. बहन का नाम - सुदर्शना
१८. कुमार काल - ३० वर्ष
१९. शरीर प्रमाण - ७ हाथ प्रमाण
२०. गृहवास में ज्ञान - मति, श्रुत, अवधिज्ञान
२१. दीक्षा तिथि - मार्ग शीर्ष कृष्णा १०
२२. दीक्षा स्थल - क्षत्रिय कुण्डपुर
२३. दीक्षा के समय तप - दो दिन की तपस्या
२४. दीक्षा पर्याय - ४२ वर्ष
२५. दीक्षा वृक्ष - अशोक वृक्ष
२६. दीक्षा परिवार - अकेले दीक्षित
२७. साधना काल - १२ वर्ष, ६ मास, १५ दिन
२८. प्रथम देशना स्थल - ज्रिभंक ग्राम ( देवों के बीच में )
२९. प्रथम देशना तिथि - वैशाख शुक्ला १०
३०. द्वितीय देशना तिथि - वैशाख शुक्ला एकादशमी
३१. द्वितीय देशना स्थल - मध्यम अपापा ( पावापुरी )
३२. अंतिम देशना स्थल - पावापुरी हस्तिपाल राजा की
शाळा
३३. प्रथम पारणा स्थल - कोल्लाग सन्निवेश
३४. प्रथम पारणा दाता - बहुल ब्राह्मण
३५. केवलज्ञान तिथि - वैशाख शुक्ला १०
३६. केवलज्ञान स्थल - ऋजुबालिका नदी के किनारे
३७. केवलज्ञान के समय तप - दो दिन का उपवास
३८. केवल ज्ञान का समय - दिन का अंतिम प्रहर
३९. तीर्थोत्पति - दुसरे समवसरण में तीर्थ व संघ की उत्पत्ति
४०. आयु - ७२ वर्ष
४१. गणधर - इन्द्रभूति आदि ११ गणधर
४२. केवलज्ञानी - ७००
४३. अवधिज्ञानी - १३००
४४. मनःपर्यव ज्ञानी - ५००
४५. साधू संपदा - १४०००
४६. साध्वी संपदा - ३६०००
४७. श्रावक संख्या - १,५९,०००
४८. श्राविका संख्या - ३,१८,०००
४९. चातुर्मास संख्या - ४२
५०. निर्वाण कल्याण तिथि - कार्तिक कृष्णा अमावस्या
५१. निर्वाण भूमि - पावापुरी ( बिहार )
५२. मोक्ष परिवार - एकाकी सिद्ध
५३. अंतर मान - पार्श्वनाथ तीर्थंकर के परिनिर्वाण के बाद
२५० वर्ष का भगवान महावीर के परिनिर्वाण का अंतर
५४. मोक्षासन - पर्यकासन
५५. भव संख्या - ( सम्यक्त्व की प्राप्ति के पाश्चात् ) - २७
( नयसार के भव में सम्यक्त्व की प्राप्ति
 )

शिक्षा

सत्य
सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू
सत्यको ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की
हीआज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।

अहिंसा
इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और
पाँचइंद्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके
पथपर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का
भावरखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान
महावीरअपनेउपदेशों से हमें देते हैं।

अपरिग्रह
परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव
यानिर्जीव, चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा
संग्रहकराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता
है,उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश
अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को
देनाचाहते हैं।

ब्रह्मचर्य
महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्यउपदेश
देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन,चारित्र,
संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है।
जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्गकी ओर बढ़ते
हैं।

क्षमा
क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों सेक्षमा
चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरामैत्रीभाव है। मेरा
किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब
जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमामाँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे
प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।'वे यह भी कहते
हैं 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प
किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ प्रकटकी हों और
शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वेसभी
पापवृत्तियाँ विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'

धर्म
धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है।
महावीरजी कहते हैं जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा
धर्मरहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।भगवान महावीर ने
अपने प्रवचनोंमेंधर्म,सत्य,अहिंसा,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा
पर सबसे अधिक जोर दिया।त्याग और संयम, प्रेम और करुणा,
शील और सदाचार ही उनकेप्रवचनों का सार था। भगवान
महावीर ने चतुर्विध संघ कीस्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न
भागों में घूमकर भगवानमहावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया।
भगवान महावीर ने ७२ वर्ष की अवस्था में ईसापूर्व ५२७ में बिहार
के पावापुरी(राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को
निर्वाण प्राप्त किया।

मुझे गर्व है कि मैं जैन हुं क्योंकि मेरे परमात्मा सत्य, अहिंसा,
अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, और क्षमा का उपदेश सिर्फ़ देते ही नहीं
बल्कि सर्व समर्थ होते हुए भी इन्हें अपने जीवन में अपनाते भी
महावीर स्वामी जी जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर है।

करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 599 वर्ष पहले
वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में
पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के
यहाँ तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को वर्द्धमान
का जन्म हुआ। यही वर्द्धमान बाद में स्वामी महावीर बना। 
महावीर को 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है।
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के
मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से
ओतप्रोत था। उन्होंने एक लँगोटी तक का परिग्रह
नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग 
में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने
जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ
पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए।
उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके
अनुसार- सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा।
उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से कोशिश दुनिया 
को सही राह दिखाने की  की। 
अपने अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।

जन्म करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 540 वर्ष पहले
वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में
पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के
यहाँ तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को वर्द्धमान
का जन्म हुआ। यही वर्द्धमान बाद में स्वामी महावीर बना।
जीवन भगवान महावीर आदेश्वर परमात्मा से प्रारंभ वर्तमान
चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे। प्रभु महावीर की जीवन
गाथा यही है कि सिद्धार्थ नंदन, त्रिशला लाल के
प्रारंभिक तीस वर्ष राजसी वैभव एवं विलास के दलदल
में 'कमल' के समान रहे।
मध्य के बारह वर्ष घनघोर जंगल में मंगल साधना और 
आत्म जागृति की आराधना में, 
बाद के तीस वर्ष न केवल जैन
जगत या मानव समुदाय के लिए अपितु प्राणी मात्र के
कल्याण एवं मुक्ति मार्ग की प्रशस्ति में व्यतीत हुए।
जनकल्याण हेतु उन्होंने चार तीर्थों साधु-साध्वी-श्रावक-
श्राविका की रचना की। इन सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र,
काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। 
भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की
प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। 
दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए
हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें
स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो'
का सिद्धांत है।

भगवान महावीर आदेश्वर परमात्मा से प्रारंभ वर्तमान चौबीसी के 
अंतिम तीर्थंकर थे। 
प्रभु महावीर की जीवन गाथा यही है कि सिद्धार्थ नंदन, त्रिशला लाल के
प्रारंभिक तीस वर्ष राजसी वैभव एवं विलास के दलदल
में 'कमल' के समान रहे।
आज से करीब छब्बीस सौ वर्ष पूर्व भगवान महावीर भारत
की पावन माटी पर प्रकट हुए थे। इतने वर्षों के बाद भी भगवान महावीर
का नाम स्मरण उसी श्रद्धा और
भक्ति से लिया जाता है, इसका मूल कारण यह है
कि महावीर ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश
दिया, अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह
भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख
की प्राप्ति हेतु पाँच सिद्धांत हमें बताए : सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, 
अचौर्य और ब्रह्मचर्य।
वर्तमान में वर्तमान अशांत, आतंकी, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में
महावीर की अहिंसा ही शांति प्रदान कर सकती है।
महावीर की अहिंसा केवल सीधे वध
को ही हिंसा नहीं मानती है, अपितु मन में किसी के
प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। जब मानव का मन
ही साफ नहीं होगा तो अहिंसा को स्थानही कहाँ?
 वर्तमान युग में प्रचलित नारा 'समाजवाद' तब तक
सार्थक नहीं होगा जब तक आर्थिक विषमता रहेगी।
एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव। इस
असमानता की खाई को केवल भगवान महावीर
का 'अपरिग्रह' का सिद्धांत ही भर सकता है।
अपरिग्रह का सिद्धांत कम साधनों में अधिक संतुष्टिपर बल देता है। 
यह आवश्यकता से ज्यादा रखने
की सहमति नहीं देता है। इसलिए सबको मिलेगा और
भरपूर मिलेगा।

जब अचौर्य की भावना का प्रचार-प्रसार और पालन
होगा तो चोरी, लूटमार का भय ही नहीं होगा। सारे जगत में
मानसिक और आर्थिक शांति स्थापित होगी।
 चरित्र और संस्कार के अभाव में सरल, सादगीपूर्ण एवं
गरिमामय जीवन जीना दूभर होगा। भगवान महावीर ने हमें
अमृत कलश ही नहीं, उसके रसपान का मार्ग भी बताया है।



जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी
जन्म स्थान: कुंडलपुर माता:त्रिशला
पिता:सिद्धार्थजी
निर्वाण कार्तिक अमावस्या
निर्वाण स्थान :पावापुरी
निशान :सिंह

Comments

Advertisement

Popular posts from this blog

ADVERTISEMENT