में 'कमल' के समान रहे।
आज से करीब छब्बीस सौ वर्ष पूर्व भगवान महावीर भारत
की पावन माटी पर प्रकट हुए थे। इतने वर्षों के बाद भी भगवान महावीर
का नाम स्मरण उसी श्रद्धा और
भक्ति से लिया जाता है, इसका मूल कारण यह है
कि महावीर ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश
दिया, अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह
भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख
की प्राप्ति हेतु पाँच सिद्धांत हमें बताए : सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह,
अचौर्य और ब्रह्मचर्य।
वर्तमान में वर्तमान अशांत, आतंकी, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में
महावीर की अहिंसा ही शांति प्रदान कर सकती है।
महावीर की अहिंसा केवल सीधे वध
को ही हिंसा नहीं मानती है, अपितु मन में किसी के
प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। जब मानव का मन
ही साफ नहीं होगा तो अहिंसा को स्थानही कहाँ?
वर्तमान युग में प्रचलित नारा 'समाजवाद' तब तक
सार्थक नहीं होगा जब तक आर्थिक विषमता रहेगी।
एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव। इस
असमानता की खाई को केवल भगवान महावीर
का 'अपरिग्रह' का सिद्धांत ही भर सकता है।
अपरिग्रह का सिद्धांत कम साधनों में अधिक संतुष्टिपर बल देता है।
यह आवश्यकता से ज्यादा रखने
की सहमति नहीं देता है। इसलिए सबको मिलेगा और
भरपूर मिलेगा।
जब अचौर्य की भावना का प्रचार-प्रसार और पालन
होगा तो चोरी, लूटमार का भय ही नहीं होगा। सारे जगत में
मानसिक और आर्थिक शांति स्थापित होगी।
चरित्र और संस्कार के अभाव में सरल, सादगीपूर्ण एवं
गरिमामय जीवन जीना दूभर होगा। भगवान महावीर ने हमें
अमृत कलश ही नहीं, उसके रसपान का मार्ग भी बताया है।
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