मासक्षमण शिरोमणि श्री अशोक मुनि जी म.सा.पर विशेष

मासक्षमण शिरोमणि श्री अशोक मुनि जी म.सा.पर विशेष


इस युग की महान विभुति थे महीनों निराहारी तपस्वी साधक ’’शासन दीपक श्री अशोक मुनिजी’’


          हमे अगर कोई कहे कि केवल एक दिन के लिए निराहार रहो...निराहार माने...मात्र जल से वो भी सूर्यास्त बाद से अगले दिवस सूर्योदय तक पूर्णतया निषेध...वह भी गर्मी के दिनों में...हम शायद मना ही कर देंगे...और फिर हमें कोई यह कहे कि एक दो तीन चार दिन...नही... लगातार तीस-तीस दिनों तक अनवरत निराहार रहना है...हमारी रूह ही कांप जायेगी...लेकिन एक जैन मुनि लोगो के आकर्षण-श्रद्धा व कौतूक का केंद्र बने रहे...!

हम बता रहे है एक ऐसे संत के बारे वे हे श्री अशोक मुनिजी..

श्री अ.भा.साधुमार्गी जैन संघ के आचार्य श्री रामेश के ये शिष्य मन्दसौर में अपने 98 वे मासखमण का पारणा कर शेष काल में मन्दसौर परिक्षैत्र विराज रहे थे...64 वर्षीय मासक्षमण शिरोमणि श्री अशोक मुनिजी म.सा.पिछले कई वर्षों में बारी बारी से अनेकों अनेक दिनों तक निराहार रहते हुए पैदल विहार करते थे...आपने इन उपवास के दिनों में भी उग्र पेदल विहार किया था...इन दिनों भी मुनि लगातार तीस दिनों तक निराहार रहने का संकल्प लिए हुए थे और 98 मासखमण की जिसकी पूर्णता 11 दिसम्बर को ही हुई थी...यह मुनिवर का 98 वा मासक्षमण पूर्ण हुआ था...श्री अशोक मुनिजी ने अपने लगभग 44 वर्षिय साधु जीवन में करीब आठ वर्ष से भी अधिक समय उपवास कर मासक्षमण पूर्ण किया था...।

आप श्री 15 दिसम्बर मन्दसौर मे जम्बु वाला स्थानक मे पूर्ण चेतन अवस्था मे अपने मोक्ष पथ पर अग्रसर हो गए,आप श्री का सायंकालिन प्रतिक्रमण के पश्चात् स्वाध्याय सुनते सुनते लगभग रात्रि 9.30 बजे को देवलोक हो गया..!

    

                 🔸एक परिचय🔸


          मध्य प्रदेश रतलाम जिले के जावरा में 11 अक्टुबर 1957 आसोद शुक्ला सप्तमी संवत 2014 को माता सोहनबाई नवलखा की कुक्षी से जन्म लेने वाले बालक के मन में आरम्भ से ही आध्यात्मक में रूचि रही जानकारी अनुसार पोने दो साल की बाल्यवस्था में शांत क्रांत के जन्मदाता श्री गणेशाचार्य के शुभ आशीर्वाद से आपके जीवन में संयम के बीज अंकुरित हो गये थे इसकी जानकारी न तो सांसारिक पिता सोभाग्यमलजी नवलखा को थी और ना ही माता को,कुल तीन भाईयों व एक बहिन में सबसे छोटे भाई के तौर पर बडे ही लाड़ प्यार दुलार से पले बढे परिजनो के कहने से आपने 10 वी कक्षा तक का अध्ययन किया था लेकिन आपश्री 16 वर्ष की आयु में ही साधुमार्गी संघ के सेवा समर्पित श्री इन्द्रचंद जी म.सा.की सेवा में घर छोड कर चले गये,परिजन पुनः सांसारिक जीवन में ही रखने हेतु प्रयत्नशील थे लेकिन वह सफल नही हुऐ इसी दौरान योवनावस्था सें ही संयम जीवन व त्याग तपस्या की ओर आपका रुझान बढता ही गया और अन्ततोगत्वा 20 वर्ष की अल्प आयु में ही आसोज शुक्ला द्वितिया संवत 2034 तद्नुसार दिनांक 14 अक्टुबर,1977 में समता विभुति आचार्य श्री नाना लाल जी म.सा.की असीम कृपा से सांसारिक बंधनो से मुक्त होने के लिये आपने आचार्य श्री के मुखारबिंद से मारवाड के भीनासर में जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की...! 

      

🔹दृढ़ता की पराकाष्ठा थे अशोक मुनि🔹

         अशोक मुनि को जैन दीक्षा अंगीकार किए करीब 44 बरस हो गए थे,दिक्षा से पूर्व तरुणावस्था में ही उन्होंने निराहार रहने का क्रम प्रारम्भ कर लिया था...दीक्षा लेने के बाद तो इनकी इस गति पर मानो पंख ही लग गए हो,क्यों न लगते..? क्रांतीकारी श्री गणेशाचार्य व समता के मसीहा आचार्य श्री नानेश एवं युग निर्माता नव उर्जा प्रदाता वर्तमान आचार्य श्री रामेश का आशीष आपके सिर पर जो था उसी का परिणाम हैं कि मुनिश्री जब ठान लेते है तो हर कोई दंग रह जाता है... मुनिश्री अपनी इस अपूर्व तपस्या को लेकर कब क्या ठान ले किसी को भी पूर्वानुमान नही हो सकता था...छोटी मोटी तपस्याओं का दौर तो चलता ही रहा लेकिन वर्ष 1989 में पहली बार इन्होंने लगातार तीस दिनों तक निराहार रहने की ठान ली...बस फिर क्या था...किसी के भी रोके नही रुके...इसके बाद साल में एक मासखमण करने का क्रम बना लिया जब इनको लगा कि एक साल मे एक मासखमण तो आसानी से हो जाता है तो फिर साल में दो फिर तीन और पांच और उसके बाद सीधे साल के नो मासखमन करने की ठान ली और यही इनकी दृढ़ता की पराकाष्ठा है..और अब तक इन्होने 98 बार लगातार तीस-तीस दिनों तक निराहार जीवन जीया था...

आपको बता दे इस अवधि में संत केवल मात्र उबला हुआ पानी का ही सेवन करते थे... ओर कई बार तो मुनि कई दिनों तक पानी का भी त्याग कर लेते थे..।


साधुचर्या का निर्वहन करते हुए करते थे विहार


यदि हम इन मुनि के अपूर्व जीवन पर जरा नजर डाले...तो यह जानकर हम चमत्कृत रह जाएंगे कि निराहार रहने के दौरान भी मुनि अनवरत साधुचर्या का निर्वहन करते हुऐ विहार भी करते रहे...आपको बता दे नियमानुसार जैन मुनि के चातुर्मास के अतिरिक्त एक ही स्थान पर 28 दिनो से अधिक दिनों तक ठहरने का कल्प नही रहता है...भूखा रहकर... चलते रहना...चलते रहना... ओर कभी कभी 40 से 50 की.मी.तक का लम्बा विहार भी एक दिन मे कर लेते थे... यह किसी विरले व्यक्तित्व का ही जीव हो सकता है...!

पारणे की भी थी अजब कहानी


आज हम एक दिन का एकासन करते है तो सुबह से लेकर रात तक दिन के भोजन के अतिरिक्त फलाहार कर अपनी पूर्ति कर लेते है लेकिन तीस दिनों के उपवास (मासक्षमण) के बाद भी संत पारणा करते हे तो श्रावक अपने लिये भोज्य पदार्थो मे से संत भिक्षापात्र में अर्पण करना चाहते है तो उसे भी मर्यादा अनुरूप जानते है तो ही ग्रहण कर पारणा करते है...आपको बता दे कई बार तो ऐसे प्रसंग भी उपस्थित हुऐ की मक्की की रोटी से संत ने पारणा किया था... संत का यह चमत्कार भी देखिए की ये संत मात्र कुछ दिनों तक ही अन्नादि ग्रहण करने के बाद फिर से अपनी तप साधना की ओर अपना रुख कर लेते है...हालाकि पिछले 15-20 मासखमण को देखा जाए तो 7 दिन से 10 दिन के अंतराल में ही नया मासक्षमण आरम्भ हो गया था...! 


साधु जीवन में 98 मासखमण सहित की अन्य कई तपस्या


 अब तक हम अपने शास्त्रो में पढते आये है अमुख संत ने इतने दिनो तक कठोर तपस्या की हम मात्र कल्पना करके ही रह जाते थे कि इतनी तपस्या कोई कर सकता है क्या...लेकिन इस परिकल्पना को साकार किया है शासन दीपक श्री अशोक मुनिजी म.सा.ने जिन्होने करिब 44 वर्ष के अपने अब तक के साधू जीवन में 98 मासखमण तो कर लिए थे... इसके अतिरिक्त 11,34,41,55 दिनों तक की आयंबिल की भी तपस्या भी की थी...इनके अतिरिक्त कई बार तीन,पांच,आठ की तपस्या की है जिसकी भी लम्बी श्रृंखला हे...इस प्रकार इनकी इस तरह की घोर तपस्या को हम यो भी देखे.. इन मुनि ने अब तक 98 मासक्षमण के दौरान लगभग 3000 दिनों की लम्बी अवधि पूर्णतया निराहार रहकर जी ली है साथ ही अन्य उपवासों आदि को भी जोड़ ले तो इनके निराहारी जीवन की श्रृंखला और भी लम्बी हो जाती थी...। 

मौन साधना था आपका तप साधना का ‘‘सम्बल’’


        आपको बता दे मुनिश्री की तपस्या का ‘‘सम्बल’’ इनकी मौन साधना भी बनी हे...मुनि मंगलवार व शुक्रवार सप्ताह में दो दिन पूर्णतः मौन धारण किए रहते थे...बाकी के पांच दिन वे प्रवर्चन-धर्म चर्चा में ही मौन खोलते थे... यहां तक की तपस्या के दौरान भी घण्टो घण्टो तक प्रवचन व ज्ञान चर्चा करना, इनकी इन तपस्याओं के दौरान जांच करने वाले चिकित्सक भी अचंभित रह जाते थे...वे आश्चर्य करते हे कि ऐसी परिस्थितियों में भी मुनि पैदल विहार कैसे करते हे...यहां साइंस भी बेबस हो जाती है...यह चमत्कार तो विरले साधू-संतो के बस की ही बात होती है...।

यह 98 वे मासखमण को सकुशल पूर्ण कर मन्दसौर कि धरा से अपने मोक्षगामी लक्ष्य की और अग्रसर हो गए...💐

नियम के थे पक्के


आपश्री नियम के पक्के रहे... बिना मुखवस्त्रीका धर्म स्थान मे प्रवेश करना,सेल की घडी,मोबाइल,फोटो आदि का उपयोग आप श्री के सम्मुख पुर्णतया वर्जित था...।

धर्म स्थानो मे शालीन परिधान परम्परा को आपने नया आयाम दिया...।

आप श्री के मधुर सटीक प्रवचन,मधुर कंठ से निकले गीतों की सरगम व मांगलीक का प्रभावी स्वरुप हम अपने जीवन मे सदैव अनुभव करते रहेगें...


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