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विश्व मैत्री उत्सव के रूप में जैन सामयिक फेस्टिवल का विशाल आयोजन

 एकता की पटरी पर दौड़ेगी…..सामयिक की गाड़ी…..

विश्व मैत्री उत्सव के रूप में जैन सामयिक फेस्टिवल का विशाल आयोजन 3 जनवरी 2021 रविवार को प्रातः 9 से 10 बजे पूरे भारत मे एक साथ…..

उक्त सामयिक फेस्टिवल में जुड़ेंगे जैन धर्म के समस्त धर्मावलम्बी…..



अभातेयुप व समस्त प्रमुख जैन संस्थाओं के सहयोग से गत वर्ष भी हुआ था उक्त आयोजन जिसमे पूरे भारत व सात समंदर पार तक एक ही दिन व एक ही समय में हुई थी लगभग 1.25 लाख सामूहिक सामयिक….

अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप कोठारी ने समस्त जैन धर्मावलंबियों से उक्त सामयिक फेस्टिवल कार्यक्रम से जुड़ने व सफल बनाने हेतु किया विशेष अनुरोध…. 

इस जगत में अनेकों पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं, इसमें से अधिकांश पर्व आमोद-प्रमोद तथा लोक व्यवहार से ओतप्रोत रहते हैं। वैसे तो प्रत्येक पर्व का अपना एक महत्व रहता है लेकिन धर्म-अध्यात्म से जुड़े पर्वों व आयोजनों का जीवन पर सकारात्मक असर व प्रभाव पड़ता है, ऐसे पर्व ही हमें उत्कृष्ट व सकारात्मक जीवन जीने की राह दिखलाते है। जिसमें समता की साधना का अगर पर्व हो तो आत्म कल्याण की राह विकसित होने की संभावना और भी बलवती हो जाती हैं। गत वर्ष इन्ही दिनों एक ऐसा ही विरल प्रयास अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद व सभी प्रमुख जैन संस्थाओं के सहयोग से किया गया था और वो था ‘विश्व मैत्री के उत्सव’ के रूप में ‘जैन सामायिक फेस्टिवल’। 

इस फेस्टिवल को जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों, गच्छों, पंथों व मतों द्वारा पूर्ण श्रद्धा व समर्पण के साथ मनाया गया था और भारत की इस पावन धरा के साथ-साथ सात समंदर पार तक एक ही दिन व एक ही समय में लगभग 1.25 लाख सामायिक हुई थी जो कि अपने आप में एक अनूठा व विरला उदाहरण था। वर्तमान के दौर में सम्पूर्ण जगत का मानव विश्व व्यापी कोरोना महामारी के प्रकोप से सहमा व डरा हुआ है।

 इस वायरस से भारत सहित विश्व में करोड़ों लोग संक्रमित है व लाखों लोग मौत के मुंह में समा गए हैं। ये महामारी हमारे विस्तारवादी दृष्टिकोण व असंयमित वातावरण का दुष्परिणाम है। सचमुच में ये तमाम विषमताएं भोगवादी प्रवृति की देन है। ऐसे विकृत दौर में सामायिक का महत्व और भी बढ़ जाता है। किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि विषमता में अशांति है, समता में शांति है, विषमता में दुःख है, समता में सुख है, विषमता में पतन है, समता में उत्थान है, विषमता में ध्वंस है, समता में उत्थान है। विषमता को हम एक तरह का अभिशाप कह सकते हैं जबकि समता वरदान हैं। 

इन विषम परिस्थितियों से उभरने व समता की साधना करने के उद्देश्य से अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद व प्रमुख जैन संस्थाएं आगामी 3 जनवरी 2021 रविवार को प्रात:9 से 10 बजे ‘विश्व मैत्री के उत्सव’ के रूप में ‘जैन सामायिक फेस्टिवल’ का विशाल आयोजन किया जा रहा हैं।

अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संदीप कोठारी ने इस फेस्टिवल में सभी जैन धर्मावलंबियों से जुड़ने व इसे सफल बनाने का विनम्र अनुरोध किया है। श्री संदीप जी कोठारी ने ये बताया कि ये आयोजन किसी एक धर्म व सम्प्रदाय तक सीमित नही है बल्कि जैन परम्परा के अंतर्गत तमाम सम्प्रदायों, गच्छों, पंथों, मतों के श्रद्धालुओं व धर्म-अध्यात्म में श्रद्धा व विश्वास रखने वाले तमाम धार्मिकों द्वारा व सभी के लिए हैं। विदित रहे कि जैन परम्परा में सामायिक एक सर्वमान्य व प्रभावी अनुष्ठान हैं। एक दृष्टि से सामायिक जैन साधना परम्परा का प्राण तत्व भी हैं। ये सर्वविदित है कि वर्तमान के दौर में जन-जीवन असंतुलित होता जा रहा है। दिनचर्या में संतुलन का अभाव नजर आ रहा है। विषम परिस्थितियों में सामायिक की साधना से संतुलन बनाए रखने का प्रशिक्षण मिलता हैं। लाभ-लाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निंदा-प्रशंसा-इन सब परिस्थितियों में सम रहना, साधना का सर्वोच्च शिखर है। इस शिखर का आरोहण करने का साधन है-सामायिक। हिंसा, असत्य, संग्रह-ये सब मनुष्य को विषमता की और ले जाते हैं। इससे मुक्त होने का अभ्यास है-सामायिक।सामायिक एक दर्पण है, जिससे आप अपने भीतर का चेहरा देख सकेंगे, आत्म दर्शन कर सकेंगे।

धार्मिक जीवन का सबसे बड़ा सूत्र है-समता की साधना, सामायिक की आराधना। सामायिक स्वीकार करते समय प्रत्याख्यान किया जाता है।

करेमि भंते समाइयं सवज्जं जोगं पच्चक्खामि है भगवन्! में एक मुहूर्त तक सावद्य योग का प्रत्याख्यान करता हूं। सावद्य योग अथार्त अठारह पाप में प्रवृति। अठारह पाप सावद्य है। सामायिक में अठारह पापों का त्याग किया जाता हैं।

आध्यात्म साधना में एक प्रयोग है-जप। इष्ट का स्मरण करना, उसमें तन्मय हो जाना, माला फेरना आदि जप की कोटि में आते हैं।

श्वास के साथ इष्ट मंत्र का अजपाजप करना एक महत्वपूर्ण साधना होती हैं।

जैन शासन में नमस्कार महामंत्र का बहुत बड़ा महत्व है। बच्चों को भी नमस्कार महामंत्र कंठस्त करवाया जाता है। मानों जन्म घूँटी में नमस्कार महामंत्र के संस्कार दिए जाते हैं।

वीतरागता पर आधारित यह एक विशुद्ध मंत्र हैं।

■ अर्हत विशुद्ध चेतना वाले है। वे राग-द्वेष मुक्त होते हैं।

■ सिद्ध वीतराग ही नहीं, वीतदेह भी होते हैं।

■ आचार्य वीतराग शासन के अधिनेता होते हैं। वे स्वयं वीतरागता की साधना करने वाले और दूसरों की साधना का पथप्रदर्शन देने वाले होते हैं।

■ उपाध्याय ज्ञानमूर्ति होते हैं। वीतराग वाणी के अध्येता और अध्यापयिता होते हैं।

■ साधु भी वीतराग या वीतरागता की साधना करने वाले होते हैं। इस प्रकार नमस्कार महामंत्र वीतरागता पर आधारित महामंत्र है। अध्यात्म की दृष्टि से यह एक अति विशिष्ट मंत्र हैं। इसका जप कर्म विशुद्धि का एक महत्वपूर्ण साधन है।


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