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चातुर्मासिक मिच्छामि दुक्कड़म
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।।। चातुर्मासिक मिच्छामि दुक्कड़म ।।।
वैसे तो हम सभी की कोशिश यही रहती है कि हमारी वजह से, हमारी किसी भी बात से, किसी क्रिया या कार्य से कभी किसी को कष्ट ना पहुँचे । परंतु मानव-सहज स्वभाव है कि कभी कभी हमारी वजह से किसी ना किसी को कुछ खेद हो ही जाता है ।
अनिच्छा पूर्वक ही सही पर मुझसे भी यह हुआ ही होगा ।
मेरी ऐसी हर भावना (मन), बात (वचन), और क्रिया (काया) द्वारा हुई हर क्षति के प्रति आप सभी से करबद्ध मिच्छामि दुक्कड़म मांगता हूँ ।
इस विषम काल और इस वैष्विक आपदा में शायद कभी इस संक्रमणता के कारण मन में कोई भी कटुभाव आया भी हो सकता है । अगर ऐसा कुछ भी हुआ हो तो उस जीव से विशेष मिच्छामि दुक्कड़म मांगता हूँ ।
इस वर्ष गुरुदेव और जिनवाणी ( गुरुवाणी ) का सानिध्य का प्राप्त होना करीब करीब दुर्लभ रहा, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हम इनसे वंचित रहे । जो भी ग्रंथ - जिनवाणी की प्रतिलिपि हमारे पास थी, उसे ही गुरुभगवंत मान कर उन्हें सदैव वंदना करते रहे । इस विपदा ने श्रुत की लिपिबद्धता का महान लाभ हमें समझा दिया है ।
इस आपदा के काल में आप सभी स्वस्थ रहे, यथा शक्ति धर्म-ध्यान और तपस्या करे ।
पुनः *मिच्छामि दुक्कड़म* ।
चातुर्मास बिदाई गीत ⬇⬇⬇⬇⬇⬇⬇
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