श्री शत्रुंजय शाश्वत तीर्थ जिनालय पालीताणा

 श्री  शत्रुंजय शाश्वत तीर्थ
जिनालय पालीताणा

भूत - भविष्य और वर्तमान काल के सभी तीर्थों में शिरोमणी है । अनंता-अंनत तीर्थंकरों के समय से ही यह मुख्य एवं शाश्वत तीर्थ है । देवलोक के रूचक, कुण्डल, नंदीश्वर द्वीप के तीर्थों में शत्रुंजय मुख्य तीर्थ है, अष्टापद, सम्मेत शिखरजी, पावापुरी, चम्पापुरी, अयोध्या, वाराणसी, हस्तीनापुर, गिरनार इन सभी से शाश्वत तीर्थ शत्रुंजय है l

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                अनादिकाल से अनंतकाल तक न मिटने वाला शाश्वत तीर्थ जहा का एक एक पत्थर अपनी एक विशेषता लिए बेठा है जिसके नाम स्मरण मात्र से भव भवान्तर के पाप मुक्त हो जाते इसे शत्रुंजय गिरिराज (मोक्ष नगरी) पालीताणा की महिमा के बारे में जानना अत्यंत ही आनंद का कार्य है। अतिमुक्त केवली ने नारद ऋषि से शत्रुंजय की महिमा का निम्नानुसार वर्णन किया था।

★अन्य तीर्थ पर उग्र तपस्या एवं ब्रह्मचर्य पलने में जो लाभ होता है वही लाभ गिरिराज पर रहने मात्र से मिलता है।

इस तीर्थ के स्पर्श मात्र से तीनलोकों के दर्शन का लाभ मिलता है।

गिरिराज को वंदन करने से जहां-जहां केवलज्ञानियों एवं साधुओ का निर्वाण हुआ है, उस सब स्थानों की वंदना स्वतः ही हो जाती है।

अष्टपद, सम्मेत शिखरजी, पावापुरी, गिरनार, चंपापुरी वगैरह तीर्थ के दर्शन वंदन से100 गुना अधिक फल इस तीर्थ के वंदन स्मरण मात्र से मिलता है।

जो यहाँ प्रतिमा भरवाता है वह चक्रवर्ती पद को पता है।

शत्रुंजय नदी में स्नान करने वाला भव्यात्मा होता है।(सारावली पयन्त्रा)

यहाँ पूजा करने से 100 गुणा फल, प्रतिमास्थापन करने से हजार गुणा व तीर्थ की रक्षा करने से अनंत गुणा फल प्राप्त होता है।

यहाँ एक तप  का100 गुणा फल मिलता है एंव जो छठ (बेला) करके सात यात्रा करे वो तीसरे भव में मोक्ष पाते है।

शत्रुंजय तीर्थ में रथ अर्पण करने से चक्रवर्ती होता है। (श्राद्ध विधि)

यहां के रायण वृक्ष के हर पत्ते में, फल में, जड़ में देव का वास है।रायणवृक्ष की पूजा करने से बुखार दूर हो जाता है।

पार्श्वनाथ भगवान के भाई हस्तिसेन ने संघ निकला उस समय रायण वृक्ष निकला था।

आने वाली चौविशी के सभी तीर्थकर यहा विचरेगे।

अजितनाथ भगवान इस गिरि पर3000 बार आए थे।

दंडवीर्य राजा संघ लेकर इसा तीर्थ पर आए, उस समय उनके संघ में रहे हुए सात करोड़ श्रावक-श्राविकाओं को इस तीर्थ के ध्यान से मोक्ष प्राप्त हुआ था।

देवकी के छः पुत्र, जादव पुत्र, सुव्रत सेठ, मंडक मुनि, सेलक मुनि और आईमुत्ता मुनि ने इस तीर्थ पर मोक्ष पाया था।

सुधर्मागणधर के शिष्य चिल्लण मुनि संघ के साथ गिरि पर चढ़े, संघ अतीतष्णातुर हुआ, मुनि ने विचारशक्ति से पानी मंगवाया तब से चन्दन तलावडी प्रसिध हो गई।

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ऋषभदेव प्रभु इस तीर्थ पर 99 पूर्व बार पधारे।

शत्रुंजय के ध्यान में माणकचंद सेठ मरकर तपागच्छ के अधिष्ठायक देव मणिभद्र बने।

कवड यक्ष शत्रुंजय केअधिष्ठायक देव है।

वस्तुपाल तेजपाल चतुर्विध संघ के साथ इस तीर्थ पर बारह बार यात्रथ पधारे।

पद्लिप्त सूरी के नाम से पालीताणा नगर नाम पडा।

इस काल में भरत महाराजा ने सर्वप्रथम शत्रुंजय का संघ निकला था, जिसमें 32,000 मुकुट बध्द राजा, 32,000 नाटक वाले, 84 लाख वाध्य, 3 लाख मंत्री, 84 लाख हाथी, 5लाख दिवी धारण करने वाले 84 लाख घोड़े, 16,000 यक्ष, 84 लाख रथ, 10 करोड़ ध्वजा धारण करने वाले, सवा करोड़ भरत के पुत्र, 99 करोड़ संघपति एवं करोडो साथु – साध्वीजी थे। (शत्रुंजय कल्पवृति)

शत्रुंजय पर्वत को देखे बिना शत्रुजय यात्रा जाते संघ का वात्सल्य करे तो करोड़ गुना पूण्य प्राप्त होता है। (श्राद्ध विधि)

अन्य स्थान में करोड़ पूर्व तक क्रिया करने से जितना लाभ मिलता है उतना फल इसा तीर्थ में निर्मलता से कार्य करने वाले को अंतमुहुर्त में प्राप्त होता है।(श्राद्ध विधि)

सिद्धगिरि की पवित्र भूमि पर 1 मुनि को दान देने से 10 करोड़ श्रावकों को जिमाने से भी ज्यादा लाभ मिलता है।

नवटुंक में 108  बडे जिनालय में और 872 छोटे मंदिरो में सात हजार प्रतिमाओ है।

गिरिराज पर मुख्य जिनालय में 2.16 मीटर के मूळनायक श्री आदिनाथ परमात्मा की अलौकिक प्रतिमा भक्त के भावो को जगाती है। आदिनाथ परमात्मा की प्रतिमा की प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1587 में वैशाख वद 6 के दिन आचार्य श्री विद्यामंडणसूरिजी की निश्रा में कर्माशाह ने जीणोद्धार किये जिनालय में की है। 

गिरिराज के 16 बडे उद्धार हुए है। 1640 फूट की ऊंचाई पर कला कारीगरी युक्त जिनालयो तथा इतनी मूर्तियाँ विश्व में कहीं ही देखने को नही मिलती है।


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