Mane Vesh Shraman No Maljo Re
मने वेश श्रमणनो मळजो रे..
मने वेश श्रमणनो मळजो रे..
आठ प्रहरनी साधना काजे, वहेली परोढे हुं जागुं,
श्वासो लिव माटे पण हुं, गुरुनी आणा मांगु
आंख ईर्यासमिते ढळजो रे... मने वेश श्रमणनो मळजो रे...
सूत्र अर्थने, स्वाध्याय साधी, शास्त्रो सघळा वांचुं,
जिनवाणी नुं, परम रहस्य, पामीने अंतर याचुं,
अज्ञान बधुं मुज टळजो रे...मने वेश श्रमणनो मळजो रे..
आहार मां रस होय नहींने, घर घर गोचरी भमवुं,
गामो गाम विहरता रेहवुं, कष्ट अविरत्त खमवुं,
मारा कर्मो निर्जरी जाजो रे.. मने वेश श्रमणनो मळजो रे..
पंच महाव्रत पालन करवुं, निर्दोष ने निश्कलंक,
समता मां लायलीन रेहवुं, सरखा रायने रंक,
मारो साद प्रभु सांभळजो रे...मने वेश श्रमणनो मळजो रे..
आ जीवन अणीशुद्ध रहीने, पामुं हुं अंतिम मंगल,
साधी समाधि परलोक पंथे, आतम रहे अविचल,
मारी सद्दभावनाओ फळजो रे...मने वेश श्रमणनो मळजो रे..
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