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जैन धर्म का प्रवेश द्वार Jain dharm ka pravesh dwar


🎊 *जैनधर्म का प्रवेश-द्वार* 🎊*

🚩जैन थाली🚩*


*सादा भोजन 🍴 सुखकर जान,*
*बूढ़ा खाए चाहे जवान।*

*प्रासुक पियो हमेशा पानी 💧,*
*जो चाहो सुखमय जिंदगानी।।*

*मर्यादा का आटा 🌾 खाओ,*
*सेंधा नमक काम में लाओ।* 

*जमीकंद 🍠 ❌ नहीं घर में लाना,*
*अनंत जीव  का जहाँ ठिकाना।।* 

*घर में होवे आटा चक्की,* 
*बात बनेगी तब ही पक्की।*

*नल का पानी कभी नहीं,* 
*कुआ  न हो तो बोर सही।।*

*भक्ष्य-अभक्ष्य का रक्खो ध्यान,* 
*जिनवाणी का यह फरमान।*

*निश भोजन जो करे करावे,*
*जैन धर्म में दोष लगावे।।* 

*हरितकाय गणना संयुक्त हो,*
*दशलक्ष से दोषमुक्त हो।*

*आठें चौदश हरी को त्यागो,*
*सदाचार में हरदम जागो।।*

*खानपान में जितनी शुद्धि* 
*वैसी होवे मन विशुद्धि।*

*न्याय-नीति से द्रव्य कमावे,*
*जीवन भर वह साथ निभावे।।*

*पुण्य कार्य में द्रव्य लगावे,*
*उसका फल परभव तक पावे।*

*यह सब तो सदाचार है,*
*इसको तो करना ही सार है।।*

*पर इसमें नहीं संतुष्टि हो,*
*आगे बढ़ने की दृष्टि हो।*

*सच्चे देव शास्त्र गुरु जानो,* 
*जो वह कहें उसी को मानो।।* 

*पूजन व्रत स्वाध्याय तप पालो,* 
*वीतराग के वचन ना टालो।*

*यह दिनचर्या नित्य की जानो,*
*पर इन में धर्म मत मानो।।* 

*इनसे नहीं संसार घटेगा,*
*देव गति तक भ्रमण करेगा।*

*अब निश्चय के लक्षण जानो,*
*जो जैसा है वैसा मानो।।* 

*पहले अरिहंत, सिद्ध को जानो,*
*सही स्वरूप उनका पहचानो।*

*दूजे सातों तत्त्व बतलाए,*
*उनके स्वरूप गिन-गिन कर गाए।।* 

*तीजे स्व को स्व पर को पर जानो,* 
*चौथे निजात्मा को ही पहचानो।।* 

*इसमें जो भी जीव जमेगा,*
*जन्म मरण से वही बचेगा।* 

*वह कहलावे केवलज्ञानी,*
*ऐसा बतलावे जिनवाणी।।*

*बस यही सीख मान लो यार,* 
*निज आतम से कर लो प्यार।*

*जीवन सफल बना लो भाई,*
*यह पर्याय बमुश्किल पाई।।*

*_शेर~_*

*धर्म की बात समझने को,* 
*बस इतना ही मात्र है।*

*विशेष जानना हो तो,* 
*पढ़ो नित्य शास्त्र है।।*

*खूब विनय कर करते अर्जी।*
*मानो ना मानो आपकी मर्जी।।*


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