व्रत साथ नहीं जाते पर व्रत के संस्कार जीव के साथ जाते हैं -पूज्य श्री अतिशय मुनि जी

 मोक्षार्थ चातुर्मास खाचरोद

व्याख्यान सारांश

आज दिनांक 14/05/2021 शनिवार को पूज्य श्री अतिशय मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया कि

-इंद्र भूति गौतम गणधर ने भगवान महावीर से पूछा ज्ञान दर्शन चरित्र में से साथ में क्या जाता है ?

भगवान ने बताया ज्ञान दर्शन साथ में जाता है।

इंद्रभूती गौतम बोले जब ज्ञान दर्शन साथ में जाता है तो फिर चारित्र लेने से क्या मतलब । चारित्र क्यों लेना?

तो भगवान ने फरमाया ,भले व्रत साथ नहीं जाते पर व्रत के संस्कार जीव के साथ जाते हैं । श्रद्धा शुद्ध होगी तो चारित्र निर्मल बनता है , चारित्र को जो व्यक्ति अच्छा समझता है वही ज्ञान सच्ची श्रद्धा है । चारित्र के प्रति अरुचिभावना होने पर ,यह समझना चाहिए अभी ज्ञान आया नहीं है । केवल चारित्र ग्रहण करने की इच्छा नहीं है तो ज्ञान की उपेक्षा हुई।

ज्ञान के बल पर ही जीव श्रद्धा की शुद्धि कर सकता है । जानकारी के अभाव में पानी में जीव है ,यह मानता ही नहीं। व्यर्थ पानी बहता रहता है ज्ञान के बल पर जीव अनर्थ दंड से होने वाली हिंसा से बचता है ।

यही प्रयास आगे चलकर चारित्र धर्म में परिणित हो जाता है ।अनर्थ दंड से होने वाली हिंसा जिनेश्वर देवकी आज्ञा का उल्लंघन है। क्रिया में निर्मलता नहीं आ पाएगी ।।

कचरा निकालने वाली बाई कचरा निकालें तो वह कितनी यतना कर पाएगी, स्वयं घर का व्यक्ति कचरा निकालें तो यतना हर प्रकार से संभव है । जानकारी के अभाव में यतना नहीं हो पाएगी ‌।

ज्ञान और दर्शन की शुद्धि से चरित्र का निर्माण होता है । ज्ञान और श्रद्धा शुद्ध नहीं है तो तीन काल में भी चरित्र निर्माण होने वाला नहीं है।

श्रद्धा नहीं होने पर यह ज्ञान द्रव्य रूप में ही रहेगा भाव रूप में परिणत नहीं होगा।

कैसी कुमार श्रमण विद्या चारण पारग थे। वे ज्ञान को अपने जीवन में घटित करते गए , ज्ञान दर्शन चरित्र में निर्मल बने।

जीवन में निर्मलता लाने के लिए तीन बातें आवश्यक है।

1 अनुमोदना, 

2 प्रायश्चित भावना 

3 हिंसा नहीं करना


अनुमोदना- धर्म और धार्मिक जनों की, गुणी जनों की अनुमोदना करना -मोक्ष लक्ष्य प्राप्त कर लिया है ,उनकी तथा मोक्ष मार्ग पर लगे हुए की अनुमोदना करना।

प्रायश्चित भावना-इंद्रियां सशक्त होने पर भी धर्म आराधना नहीं करना, आराधना में मन नहीं लगाना, अवसर होने पर भी अवसर का लाभ नहीं लेना - इनसे चरित्र की उपेक्षा होती है।

संसार की क्रिया से खेद भावना होना प्रायश्चित भावना है।

हिंसा--जीवो को मारने के उद्देश्य से Hit , All out ,मच्छर मारने वाला बेट आदि से जीव मरते हैं। स्वयं को साता पहुंचाने के उद्देश्य से जीवो की हिंसा की जाती है।

ठंड गिर रही है और पंखा चला कर ओढ़ कर सोए हुए हैं , इस क्रिया द्वारा वायु काय के जीवो की हिंसा की जाती है।

इन क्रियाओं में अहिंसक भाव आने पर चरित्र निर्मल बनता है।

जिव को बचाने के भाव हो तो यतना हो सकती है। यतना ज्ञान होने पर ही संभव है। जीव स्वयं की साता के लिए अन्य जीवो की उपेक्षा करता है ,तो जिव चारित्र निर्मल नहीं बना सकता।

घर के बाहर बगीचा क्यों लगाते हैं। घर की सुंदरता के लिए।? इंद्रिय विषयों की पूर्ति के लिए जीव हिंसा करता है।

थोड़े से मान कषाय की पूर्ति के लिए जीव कितने जीवो की हिंसा करता है। 

 जितने जीवो की अपने स्वयं से हिंसा हुई उनसे क्षमा भावना करने पर जीव के कर्म हल्के हो जाते हैं।

केसी कुमार श्रवण को बाहर की कोई शक्ति मलिन करने में समर्थ नहीं है| महाव्रत की भावना से अपने को भावित करते जाएं तो वह आत्मा निरंतर आगे बढ़ते जाती है, जीव जब अकेला होता है तो विचलित भाव ज्यादा आते हैं । दो व्यक्ति हमें हमेशा देखते रहते हैं, वह हैं केवल- ज्ञानी और स्वयं की आत्मा ,यह भावना होने पर व्यक्ति- जिव पाप नहीं करता ,पुरुषार्थ के बल पर केसीश्रमण की आत्मा आगे निकल गई।

जिवो को स्वयं विचार कर अपनी आत्मा को उत्कृष्ट बनाना है महापुरुषों के गुणगान करते हुए उनके द्वारा किए गए कार्यों का अनुसरण करते हुए अपनी आत्मा को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाना है।

पूज्य प्रवर्तक श्री जिनेन्द्र मुनि जी  महाराज साहब  ने फरमाया कि उत्तराध्ययन सूत्र 

सभा में जितने लोग बैठे हैं वह तल्लीनता से सुनते हैं - ज्ञान और क्रिया के बारे में सुंदर विषय चल रहा है . ज्ञान क्यों करना ? और करने से क्या लाभ ? यह बातें सुनकर आपके मन में क्या भाव आते हैं| ज्ञानी जो कथन करते हैं वह वास्तविक कथन करते हैं वे ज्ञानी कैसे हैं - वे पूर्ण ज्ञानी है।

ज्ञान को श्रवण करने से जीव को समझ पैदा होगी और समझ से श्रद्धा पैदा होगी भगवान की वाणी में तल्लीनता आती है तो पाप के प्रति अरुचि आएगी चींटी, मच्छर ,मकोड़े के बारे में सुना और समझा और आप में परिवर्तन हो गया यह क्रिया करना नहीं ,यतना कर लेना सुनकर समझ आई तो अपना आचरण शुद्ध बना यह सुना और सुन कर उपयोग किया तो ज्ञान और ज्ञान रूप में परिणत बन गया ज्ञानी लोगों की पुस्तकें पढ़ना और समझकर उपयोग में लाने पर ज्ञान की निर्मलता आएगी और श्रद्धा मजबूत बनेगी प्रतिक्रमण करने से दिनभर की लगी हुई पाप क्रियाओं की आलोचना हो जाती है, की गई गलत क्रिया क्षय हो जाएगी, प्रतिक्रमण मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ाने वाला है मोक्ष मार्ग सरल है , कठिन नहीं पर जीव को समझ आवे तब! 

पुरुषार्थ करो प्रयत्न करो तो सफलता निश्चित मिल जाती है।

उत्तराध्ययन सूत्र का 23 वा अध्ययन उद्देश्य क 3

अपकाय- पानी-भद्रबाहु स्वामी ने इस सूत्र की विवेचना की पानी के विषय में द्वार समझाया


1-विधान-भेद प्रभेद 

पानी के दो भेद सूक्ष्म पानी और बादर पानी।

सूक्ष्म पानी-पूरे लोक में भरे हुए हैं ।काजल की डिब्बी के सामान 

बादर पानी-पानी के जीव को जान नहीं सकते वह बहुत सारे जीवो का समूह है ।इस के पांच भेद।-

1-शुद्ध पानी 2 हिम 3 ओस 4 महीका 5 हरतनु ।

पानी के जीव कितने हैं? 14 राजू लोक हैं उनका घनाकार बनाएं 343 रज्जू जितना बड़ा आकार बने उनमें से 1 भाग के असंख्यात भेद करे उनमें से जो प्रतर निकले उससे भी बारिक एक प्रकार के संक्षिप्त भाग करें ।तब सब जीव पूरे होते हैं । यह साक्षात हैं पानी के जीव ।

-हाथी जब गर्भ में आता है तब वह पानी के जैसा होता है वह जीव 7 दिन में हाथी का आकार जैसा बनता है ।पक्षी के अंडे में भी तरल पानी रहता है।पानी के जीव धीरे धीरे बड़ा आकार करते हुए एक जीव में परिवर्तित होते हैं। भगवान ने फरमाया है यह विषय श्रद्धा जन्य है ।भगवान की वाणी पर श्रद्धा रखना है

✍विमल खेमसरा खाचरोद

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