धार्मिक पहेलियाँ

 धार्मिक पहेलियाँ

 

🚹1 मैं आई थी वनस्पति से, गई हाथी के ओहदे से। सुख नगर का दरवाजा खोल,मोक्ष पहुँची पहले सबसे।

1 *मरुदेवी माता*


🚹2 मेरे से बड़ा कोई नही ,ऐसा मैने सोचा था। चरण आगे बढ़ते ही,केवलज्ञान, मुझे हुआ था।

2 *बाहु बली जी।*


🚹3 पाप मेरे से बहुत हुआ,छ महीने में काट दिया। लोगों ने मुझे दी गालियां, फिर भी मैने सहन किया।

3 *अर्जुनमालि।*


🚹4 हम तीनो निम्न गति के जीव है, पर इतनी योग्यता पाते है।केवली बन हम भी, मोक्ष पूरी को पाते है।

4 *पृथ्वी ,पानी,वनस्पति।*


🚹5 पाप का में बाप हु,सब गुणों का करता हु नाश। मुझको जितना हो तो ,रखो सन्तोष,होगा मोहनीय कर्म का नाश।

5 *लोभ।*

🚹6 भूख ,रोग या मच्छर सतावे, सहे उन्हें समभावो से। इन्हें सहते सहते ही,मंजिल मिले सरलता से।

6 *परिषह।*


🚹7जन्म हुआ था बन्धन में,मृत्यु हुई थी जंगल में। दर्शनाचार का पालन किया,फिर भी गया नरक में।

7 *श्री कृष्ण वासुदेव।*


🚹8 छः काय का रक्षक हु में, आँख से तिनका निकलता नही।

मोक्ष का अभिलाषी हूँ में,मुक्ति मुझसे दूर नही।

8 *अनगार।*


🚹9 पाते हम चार पर्याप्ति,फिर भी हम कुल पांच है। बिन हमारे संसार न चलता,भाई हम कमाल है।

9 *पांच स्थावर।*


🚹10 नाना से युद्ध किया, पिता को डाला कैद में। हार गया ,राज गया,और गया नरक में।

10 *कोणिक।*


🚹11 ब्रह्मचर्य को मेने पाला था,माता को मैने धैर्य बंधाया था।

भक्त और भगवान के बीच,अनुपम प्रेम दर्शाया था।

11 *हनुमान।*


🚹12 चार से चार गुणा करने पर चौड़ाई को में पाती हूँ।मेरे द्वारा जयना होती, जैन धर्म की पहचान हूँ।

12 *मुहपति।*


🚹13 सयम की हुई भावना जब, रोग सब दूर हुआ।नाथ कौन, अनाथ कौन,इसका मुजको ज्ञान हुआ।

13 *अनाथी मुनि।*


🚹14 श्री कृष्ण का मित्र कहलाया,और सेठ का नाम धराया।आतंक सब दूर किया मैने, क्षमा,अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

14 *सुदर्शन सेठ।*


🚹15 मुझको भाता केवल पुरुष वर्ग,जो पांच इन्द्रिया पाते है। मेरे यहाँ से निकल कर, निम्न गति को पाते है।

15 *सातवीं नरक।*

🚹16 पांच में से एक हूँ, सभी घरों में मिलता हूँ  धरती से भी अधिक हु, सभी रसो का मूल हूँ।

16 *पानी।*


🚹17 मेरी स्थिति कम है, फिर भी सबसे ऊपर हूँ। योगी का मै हूँ विलोम,फिर भी सबसे ऊपर हूँ।

17 *अयोगी।*


🚹18 नीच कुल में जन्म लिया, सयम को मैने धार लिया। सर्प से मुजको ज्ञान हुआ, कर्मो को मेने काट लिया।

18 *हरिकेशि मुनि।*


🚹19 श्री कृष्ण का पुत्र हुआ अभिग्रह मेने बड़ा लिया। आहार पानी मिला नही,लड्डू से केवलज्ञान हुआ।

19 *ढँढण मुनि।*


🚹20 सोने की लालसा होते ही, इच्छाये अपार बढ़ती गयी। सन्तोष धारण करते ही,मुक्ति मुझे मिल गयी।

20 *कपिल मुनि।*


🚹21 रहता था जंगल में,प्रभु वाणी को पाया  क्रोध का त्याग किया तो,देवलोक को पाया।

21 *चण्डकौशिक।*


🚹22कंगन की आवाज सुन , एकत्व भावना भाई थी। शकेंद्र ने पृच्छा कर महिमा खूब गायी थी।

22 *नमि राजर्षी।*


🚹23आंसू आये जब आँखों में, छः मासी तप का लाभ मिला भगवान के शिष्यत्व में,स्व पर का कल्याण किया।

23 *चन्दन बाला।*


🚹24 मेरी स्थिति बहुत है, पर स्तर सबसे नीचा है। अन्धकार ही अन्धकार है, बताओ मेरा नाम क्या है।

24 *नरक।*


🚹25 में भी एक तिर्थ कहलाता हु,पर मोक्ष में नही जा पाता हूँ।

छूट सहित साधना कर, देवलोक को पाता हूँ।

25 *श्रावक।*

🚹26 घेर घेर घाघरो,कली कली पील। यतना से वापरें तो,निकले कर्म की खील।

26 *रजोहरण।*


🚹27 पड्या कैद में तो रोवे नही, कैद से छूटता ही रोवे। यह जेल तो सब जीव भोगे,पण पीड़ा नही होवे

27 *गर्भवास।*


🚹28 में हूँ एक ऐसा वस्त्र,जिसे हर कोई पहनेगा। दुनिया तो देखेगी, पर खुद नही देख पायेगा।

28 *कफ़न।*


🚹29 देवू तो लाजू, न देवू तो लाजू  जल्दी से दो जवाब, न देखो आजू बाजू।

29 *कपड़े में कारी।*


🚹30 खाने को नही पूड़ियाँ,खर्च ने को नही कौड़ियाँ। बैठने नही घोड़ियाँ, नहि पाव में मोजड़िया।फिर भी सुखी कौन।

30 *साधू।*


🚹31 चौदह चुक्या,बारह भुल्या, नव का नही जाने नाम। नगर ढिंढोरा पीटा, श्रावक मेरा नाम।

31. *14 नियम 12व्रत 9 तत्व*


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