हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है. इस दिन काल भैरव की उपासना की जाती है. कालभैरव भगवान शिव के ही अवतार माने जाते हैं. अपने भक्तों से प्रसन्न होकर काल भैरव उनकी नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करते हैं.
साल 2020 कालाष्टमी 8 दिसंबर यानी आज पड़ रही है. कलियुग में काल भैरव की उपासना करने से शीघ्र फल मिलता है. आइए आपको बताते हैं कि काल भैरव को प्रसन्न कर मनचाहा फल पाने के लिए कालाष्टमी की पूजन विधि क्या होनी चाहिए.
काल भैरव की पूजा विधि-
-शिवजी के स्वरूप कहे जाने वाले काल भैरव की कालाष्टमी पर पूजा की जाती है.
- सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत रखें.
- इसके बाद मंदिर में जाकर भगवान शिव या भैरव की आराधना करें
-शाम के वक्त भगवान शिव सहित माता पार्वती और भैरव की पूजा करें.
- भैरव को तांत्रिकों का देव कहा जाता है. यही वजह है कि उनकी पूजा रात को होती है.
-भैरव की पूजा करने के लिए धूप, दीपक, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल से पूजा कर आरती करें.
-व्रत कोलने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं.
काल भैरव मंत्र-
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:
कौन से संकट होंगे दूर?
काल भैरव की महिमा जिस किसी पर हो जाती है उन पर भूत, पिशाच और काल का साया कभी नहीं मंडराता
सच्ची श्रद्धा से काल भैरव की उपासना करने से सभी बिगड़े काम संवर जाते हैं.
-माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा करने से सभी तरह के ग्रह-नक्षत्र और क्रोर ग्रहों का प्रभाव खत्म हो जाता है. सबसे मुख्य कालाष्टमी को कालभैरव जयंती के नाम से जाना जाता है.
सभी सिद्धियों को प्रदान करते भैरव
काली मंदिर खजराना के शिवप्रसाद तिवारी बताते है कि मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि इस दिन उनका जन्म हुआ था। काल भैरव को शिवजी का अवतार माना जाता है जो इनका विधिवत पूजन करता है उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। उन्हें तंत्र का देवता माना जाता है। इसके चलते भूत, प्रेत और उपरी बाधा जैसी समस्या के लिए काल भैरव का पूजन किया जाता है। इस दिन काले कुत्ते को दूध पिलाने से काल भैरव का आर्शीवाद प्राप्त होता है। काल भैरव को दंड देने वाला देवता भी कहा जाता है इसलिए उनका हथियार दंड है।
इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भी उनकी विशेष कृषा प्राप्त होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति चौकी पर गंगाजल छिड़ककर स्थापित करे। इसके बाद काल भैरव को काले, तिल, उड़द और सरसो का तेल अर्पित करे। अंत में श्वान का पूजन भी किया जाता है। इस दिन लोग व्रत रखकर भजनों के जरिए उनकी महिमा भी गाते है।
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