साहित्य और समाज विषय पर सारगर्भित निबंध लिखिए

 साहित्य और समाज विषय पर सारगर्भित निबंध लिखिए : (200 से 250 शब्दों में)

Answer:  निबंध की रूपरेखा :
1.साहित्य का अर्थ
2.साहित्यकार की महत्ता
3.साहित्य की उपयोगिता
4.साहित्य और समाज का सम्बन्ध
5.सामाजिक परिवर्तन और साहित्य
6. साहित्य की शक्ति
7.समाज को प्रभावित करने की क्षमता
8.उपसंहार

प्रस्तावना :
“साहित्य में समाज प्रतिबिम्बित होता है। तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुरूप ही किसी काल के साहित्य का निर्माण होता है।” – श्री गुलाबराय

साहित्य और समाज का सम्बन्ध :
किसी भाषा के संचित कोष को साहित्य कहते हैं जिसमें उस भाषा के बोलने वाले समाज के भाव व्यक्त होते हैं।

वह अपने अनुभव और सहृदयता के कारण युगे की भावनाओं को ऐसा रूप देता है जो नवीन न होते हुए भी साधारण लोगों की पहुँच से परे की वस्तु होती है।

तात्पर्य यह है कि साहित्य में तत्कालीन सामाजिक भावनाओं, परिस्थितियों एवं आचार-विचारों का ही चित्रण होता है। या यों कहें कि साहित्य में समाज प्रतिबिम्बित होता है।



साहित्यकार पर समाज का प्रभाव :

साहित्य की भाषा ही तत्कालीन समाज के भावों को स्पष्ट कर देती है। कारण स्पष्ट है-साहित्यकार भी सामाजिक व्यक्ति हैं। समाज की परिस्थितियों के बीच में ही उसके जीवन का निर्माण होता है।

साहित्यकार या कवि अपने युग के समाज के भावों और परिस्थितियों को सजीव एवं शक्तिशाली बनाने का कोशिस करता है। युग उसके साहित्य में बोलता है।

सामाजिक परिवर्तन के साथ साहित्य में परिवर्तन :

महाकाल के प्रभाव से समाज की राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। इस कारण समाज के साहित्य में भी सदा एकरसता नहीं होती।

देश और काल के अनुसार साहित्य में भी मोड़ आता रहता है। जो भाव और विचार कालिदास के साहित्य में मिलते हैं वे शेक्सपियर के साहित्य में नहीं मिल सकते ।

काल एवं समाज के व्यापक प्रभाव के कारण ही भिन्न-भिन्न देशों और भिन्न-भिन्न कालों के साहित्य में भारी अन्तर दिखाई पड़ता है।

हिन्दी साहित्य और समाज-उदाहरण के लिए हम हिन्दी साहित्य को ही लेते हैं।

उसके बाद भक्तिकालीन युग आता है। इस युग में कबीर, दादू, मलूकदास आदि सन्तों तथा जायसी, कुतुबन आदि सूफी फकीरों के साहित्य में निर्गुण और निराकार के उपदेशों में सगुण भगवान् मूर्तिपूजा से लोगों की उठती हुई श्रद्धा का आभास मिलता है।

उपसंहार :

इस प्रकार हम किसी भी भाषा या काल के साहित्य में तत्कालीन समाज का स्पष्ट प्रतिबिम्ब देख सकते हैं।

जिस युग में तलवारों की झंकार, आहतों के क्रन्द और पीड़ितों की आहें सुनायीं पड़ती हो, उस युग के साहित्य में वंशी की सुरीली तान सुनायी नहीं पड़ सकती।

जैसा युग का प्रभाव होगा, जैसी समाज की दशा होगी और उसी के अनुकूल साहित्य का निर्माण होगा।

वास्तव में साहित्य समाज की सच्ची अभिव्यक्ति है। यह वह दर्पण है जिसमें समाज का स्पष्ट प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है।

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