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Showing posts from April, 2020

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जैन तीर्थंकरों का परिचय

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जैन तीर्थंकरों का परिचय   जैन धर्म के 24 तीर्थंकर है। इसमें से प्रथम तथा अंतिम चार तीर्थंकरों के बारे में बहुत कुछ पढ़ने को मिलता है किंतु उक्त के बीच के तीर्थंकरों के बारे में कम ही जानकारी मिलती हैं। निश्चित ही जैन शास्त्रों में इनके बारे में बहुत कुछ लिखा होगा, लेकिन आम जनता उनके बारे में कम ही जानती है। यहाँ प्रस्तुत है  24 तीर्थंकरों का सामान्य परिचय। https://www.jinvachan.blogspot.com १) आदिनाथ :- प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को ऋषभनाथ भी कहा जाता है और हिंदू इन्हें वृषभनाथ कहते हैं। आपके पिता का नाम राजा नाभिराज था और माता का नाम मरुदेवी था। आपका जन्म चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी-नवमी को अयोध्या में हुआ। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपको कैवल्य की प्राप्ती हुई। कैलाश पर्वत क्षेत्र के अष्टपद में आपको माघ कृष्ण-१४ को निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- बैल, चैत्यवृक्ष- न्यग्रोध, यक्ष- गोवदनल,यक्षिणी-चक्रेश्वरी हैं। २) अजीतनाथजी : द्वितीय तीर्थंकर अजीतनाथजी ...

कुलकर, 63शलाका पुरुष तथा अन्य पूण्य पुरुष

🚩🚩*कुलकर, 63शलाका पुरुष तथा अन्य पूण्य पुरुष*🚩 🚩 त्रेसठ शलाका के पुरूष चतुर्थ काल में होते है ढाई द्वीप की 170 कर्मभूमियों में से 160 विदेह क्षेत्र में सदा चतुर्थ काल रहता है। पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्रों में प्रथम से छठे काल के क्रम से चतुर्थ काल आता है। 🚩🚩🚩🚩 चौदह कुलकारों के नाम (1) श्री प्रतिश्रुति (2) श्री सन्मति (3) क्षेमंकर (4) सीमंकर (5) सीमंकर (6) सीमंधर (7) विमल वाहन (8) चक्षुमान (9) यशस्वी (10) अभिचन्द्र (11) चन्द्रप्रभ (12) मरूदेव (13) प्रसेनजित (14) नाभिराजा। *** कुलकरों की पत्नियों के नाम *** (1) स्वयंप्रभा (2) यशस्वी (3) सुनंदा (4) विमला (5) मनोहरी (6) यशोधरा (7) सुमति (8) धारिणी (9) कांतमाला (10) श्री मती (11) प्रभावती (12) सत्या (13) अभितमति (14) मरूदेवी 🚩🚩🚩🚩 * किसी कुलकर ने प्रजा के लिए क्या किया* 1 - पहले कुलकर ने सूर्य चन्द्रोदय से भय मिटाया। 2 - दूसरे कुलकर ने अंधकार तथा तारागण से भय मिटाया। 3 - तीसरे कुलकर ने हिंसक जन्तुओं की संगति त्याग करने का उपदेश दिया। 4 - चैथे कुलकर ने हिंसक जन्तुओं से रक्षण के उपाय बताये। 5 - पांचवे कुलकर ने ...

Nav pad oliji vishesh lekh नव पद ओलिजी नमो सिद्धाणं

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   नवपद ओलीजी का दूसरा दिन  *सिद्ध पद की आराधना का दिन* 9 पदों में किसी भी व्यक्ति विशेष को वंदना नही की गयी है। जो जो आत्मा उन उन महान गुणों तक पहुँचे है उन सभी गुणीजनों को एक साथ वंदना की गयी है। ।।नमो सिद्धाणं।। सिद्ध प्रभु का परिचय जिन आत्माओ ने खुद के ऊपर लगे हुए सभी कर्मों का क्षय कर दिया हो। जो संसार के बंधन से मुक्त हो गए है। जो कभी जन्म नही लेंगे।  जिनकी कभी मृत्यु नही होगी, जिनका कोई शरीर, मन नही है। उन पवित्र आत्माओं को सिद्ध कहा जाता है। जिनके सभी काम सिद्ध हो गए है। सिद्ध यानि अपना खुद का स्वरुप प्राप्त करना। सिद्ध पद को प्राप्त करना ही आज के हर भव्य जीव का लक्ष्य है। अरिहंत प्रभु के कुछ कर्म क्षय होना बाकी होता है।आयुष्य का बंधन भी होता है। जबकि सिद्ध प्रभु की कोई बंधन नही होता है। सिद्ध प्रभु के साथ जो आत्मा अपना मन लगा देता है उसका मोक्ष निश्चित हो जाता है। सभी बंधन से रहित सभी सिद्धि को प्राप्त 14 राजलोक के मुकुट समान भाग पर रहे हुए है। सामान्य भाषा में कहे तो अपने ऊपर छत्र के समान वो बिराजित है। हमारी आराधना, तपस्या  , साधना आदि...

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