important to know
*आह्वान आगम सम्म्मत धारणा की एकता का*
*निम्नोक्त विषय पर कथन करने वालो ने शब्द एवं अर्थ के सम्बंध को तथा शब्द से प्रसंगोंपात निकलने वाले अर्थ को नही जाना है। जो यह👇 अर्थ करते है-*
👉 *मंत्र* को भौतिक होने पर टोटके कहना।
👉 *अरिहंताणं" का अर्थ- केवल कर्म शत्रुओं को हनन करने वाला, अर्थ को अनुपयुक्त बताकर "णमो अरहंताणं" प्रयोग करने की सलाह देते है।*
👉 ऐसे भी जैनियों की कमी नही है जो *नवकार मंत्र* के नव पद में से पांच पद का और *लोगस्स के पाठ* का अधूरा ध्यान करते है।
👉 *सिरसावत्तं* मतलब वन्दना में दायीं ओर से बायीं ओर हाथ घुमाना, बायीं ओर से दायीं ओर नही घुमाना।
👉 *करेमि भंते* का उच्चारण तीन बार करने से दृढ़ता आती है।
👉 *वोसरामि* नही बोलना, वोसिरे बोलना। क्योंकि *वोसरामि* बोलने से प्रत्याख्यान हमे लग जायेगा/ जाता है।
👉 *समण संघ* के मनमाने अर्थ करते हुए श्रावक को साधु हु कहना, मानना। जैसे- *मैं श्रमण हूँ, मैं संयत हु,... आदि उच्चारण श्रावक प्रतिक्रमण में करना मृषावाद कि श्रेणी में आता है।*
👉 *चउत्थ भत्तं पच्चक्खामि* मतलब चारो भत्त का त्याग करता हु।
👉 *पच्चक्खामि* का अर्थ त्याग करना।
👉 *एकासन/ ब्यासन* में आम/ आम रस के अतिरिक्त दूसरा फल नही खाना।
👉 *कपड़े धोने के लिए सोडा* नही लेना या उनकी भाषा मे *सोडा* लेने वाले मिथ्यादृष्टि।
👉 फ्रिज से निकाले हुए बर्तन के बाहर आया हुआ पानी को *सचित्त कहना।*
👉 पक्का केले के बीच की *काली धारी को सचित्त* कहना।
👉 *"उग्गए सूरे" अर्थ सूर्योदय से एक मुहूर्त/ एक प्रहर ही बताना। मतलब सूर्योदय से कुछ देर पहले ठसाठस पेट भरकर खा पीकर नवकारसी, पोरसी, उपवास आदि तिविहार या चौविहार करना।*
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