aagamvani important to know जानने योग्य बातें part 2


*आह्वान आगम सम्म्मत धारणा की एकता का*
*अरिहंत, अरहंत, अरुहन्त, अरोहन्त में क्या बोलना उचित है?*



*"णमो अरिहंताणं" का अर्थ- केवल कर्म शत्रुओं को हनन करने वाला, अर्थ को अनुपयुक्त बताकर "णमो अरहंताणं" प्रयोग करने की सलाह देते है।*

समाधान- 👉 आगमों में स्थान - स्थान पर अरिहंत अरहंत दोनो मिलते है किन्तु नमस्कार महामंत्र में *"णमो अरिहंताणं"* का ही प्रयोग अधिकांशतः देखने को मिलता है। श्रीमद भगवती सूत्र , जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र , कल्पसूत्र , चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र , आवश्यक सूत्र के मंगलाचरण *इसमें प्रमाणभूत हैं।*
👉 कदाचित् अरिहन्त पद के गौण अर्थ कर्म शत्रुओं का हनन करने वाला को भी स्वीकार किया जाये तो भी वह अर्थ *आगम संगत है।*
उत्तराध्ययन सूत्र के नवें नमिप्रव्रज्या अध्ययन में गाथा 22 में कहा है - “तवनारायजुत्तेण , भितूण , कम्मकंचुयं , मुणी विगय संगामोभवाओ परिमुच्चए" तप रूपी बाणों से *कर्मकञ्चुक का भेदन करके* मुनि संग्राम को पूर्ण करके संसार से मुक्त होता है।
सो नाम महावीरो , जो रज्जं पयहिइण पव्वइओ , काममोहमहासत्तु , पक्खनिग्घायणं कुणइं ( अनुयोगद्वार सूत्र ) वे महावीर हुए , जिन्होंने राज्य का परित्याग करके दीक्षित होकर *काम , क्रोध रूपी विशाल शत्रु पक्ष का विनाश कर दिया।*
👉 यदि कहा जाये कि *हन् धातु* हिंसार्थक है तथा जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है अतः *इस धातु का प्रयोग करना कैसे उचित है* तो मानना होगा कि *ऐसा कथन करने वालों ने शब्द एवं अर्थ के संबंध को तथा शब्द से प्रसंगोपात निकलने वाल अनेक अर्थ को नहीं जाना है।*
उत्तराध्ययन सूत्र के १८वें अध्ययन की गाथा ४९ में कहा है - ' तहेव कासीराया वि सेओसच्च - परक्कमे।
काम भोगे परिच्चज्ज पहणे काम महावणे।
काशीराज ने भी उसी प्रकार कामभोगों का परित्याग करके श्रेय सत्य पथ पर पराक्रम करते हुए *कर्मों के महावन को हनन कर दिया यानि कर्मो को नष्ट कर दिया।*
आगम वाक्यों में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनका उल्लेख विस्तार से करना अनावश्यक है। ऊपर के उदाहरण से समझा जा सकता है कि उत्तम भावों में *हन्* धातु का प्रयोग *हिंसा के भावों वाला होकर अहिंसा के भावों को ही पुष्ट करने वाला बनता है।

*अतः यह समझ लेना चाहिए शब्द का महत्व उसके सप्रसंग अर्थ से जुड़ा रहता है। अनेक विशिष्ट अर्थों से सम्पन्न "अरिहंताणं" पद के प्रयोग को गलत बताना आगम भाषा विज्ञान के अनुरूप नही है।*
*आवश्यक सूत्र विवेचन में अरिहंत, अरहंत आदि के अर्थों को पोस्ट ०३ में लिखा गया है, जिज्ञासु वह पोस्ट देखे जी।-*

*क्या बोलना यह विरोध नही है। विरोध है तो केवल अनुचित अर्थ निकालने का, गलत बताने की प्ररूपणा का।*
*आवश्यक अन्य सूत्रों में भी कहिन कहिन अन्य विषयों के भावार्थ में अनुचित वर्णन भी किया गया है।*


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