*आह्वान आगम सम्म्मत धारणा की एकता का*
*अरिहंत, अरहंत, अरुहन्त, अरोहन्त में क्या बोलना उचित है?*
*"णमो अरिहंताणं" का अर्थ- केवल कर्म शत्रुओं को हनन करने वाला, अर्थ को अनुपयुक्त बताकर "णमो अरहंताणं" प्रयोग करने की सलाह देते है।*
समाधान- 👉 आगमों में स्थान - स्थान पर अरिहंत व अरहंत दोनो मिलते है किन्तु नमस्कार महामंत्र में *"णमो अरिहंताणं"* का ही प्रयोग अधिकांशतः देखने को मिलता है। श्रीमद भगवती सूत्र , जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र , कल्पसूत्र , चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र , आवश्यक सूत्र के मंगलाचरण *इसमें प्रमाणभूत हैं।*
👉 कदाचित् अरिहन्त पद के गौण अर्थ कर्म शत्रुओं का हनन करने वाला को भी स्वीकार किया जाये तो भी वह अर्थ *आगम संगत है।*
➡️ उत्तराध्ययन सूत्र के नवें नमिप्रव्रज्या अध्ययन में गाथा 22 में कहा है - “तवनारायजुत्तेण , भितूण , कम्मकंचुयं , मुणी विगय संगामोभवाओ परिमुच्चए" तप रूपी बाणों से *कर्मकञ्चुक का भेदन करके* मुनि संग्राम को पूर्ण करके संसार से मुक्त होता है।
➡️ सो नाम महावीरो , जो रज्जं पयहिइण पव्वइओ , काममोहमहासत्तु , पक्खनिग्घायणं कुणइं ( अनुयोगद्वार सूत्र ) वे महावीर हुए , जिन्होंने राज्य का परित्याग करके दीक्षित होकर *काम , क्रोध रूपी विशाल शत्रु पक्ष का विनाश कर दिया।*
👉 यदि कहा जाये कि *हन् धातु* हिंसार्थक है तथा जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है । अतः *इस धातु का प्रयोग करना कैसे उचित है* तो मानना होगा कि *ऐसा कथन करने वालों ने शब्द एवं अर्थ के संबंध को तथा शब्द से प्रसंगोपात निकलने वाल अनेक अर्थ को नहीं जाना है।*
➡️ उत्तराध्ययन सूत्र के १८वें अध्ययन की गाथा ४९ में कहा है - ' तहेव कासीराया वि सेओसच्च - परक्कमे।
काम भोगे परिच्चज्ज पहणे काम महावणे।
काशीराज ने भी उसी प्रकार कामभोगों का परित्याग करके श्रेय सत्य पथ पर पराक्रम करते हुए *कर्मों के महावन को हनन कर दिया यानि कर्मो को नष्ट कर दिया।*
आगम वाक्यों में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनका उल्लेख विस्तार से करना अनावश्यक है। ऊपर के उदाहरण से समझा जा सकता है कि उत्तम भावों में *हन्* धातु का प्रयोग *हिंसा के भावों वाला न होकर अहिंसा के भावों को ही पुष्ट करने वाला बनता है।
*अतः यह समझ लेना चाहिए शब्द का महत्व उसके सप्रसंग अर्थ से जुड़ा रहता है। अनेक विशिष्ट अर्थों से सम्पन्न "अरिहंताणं" पद के प्रयोग को गलत बताना आगम व भाषा विज्ञान के अनुरूप नही है।*
*आवश्यक सूत्र विवेचन में अरिहंत, अरहंत आदि के अर्थों को पोस्ट ०३ में लिखा गया है, जिज्ञासु वह पोस्ट देखे जी।-*✳️
✍ *क्या बोलना यह विरोध नही है। विरोध है तो केवल अनुचित अर्थ निकालने का, गलत बताने की प्ररूपणा का।*
✳️ *आवश्यक व अन्य सूत्रों में भी कहिन कहिन अन्य विषयों के भावार्थ में अनुचित वर्णन भी किया गया है।*
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