aagamvani important to know जानने योग्य बातें, part 3


  important  to know 

 जानने योग्य बातें


*पाँच पदों की भाव वन्दना के पाठ*


प्रथम भाव वन्दना " णमो अरिहंताणं " अर्थात् *पहले पद में श्री अरिहंत भगवान जघन्य 20 तीर्थंकरजी , उत्कृष्ट 170 ( एक सौ सत्तर ) देवाधि देवजी,* वर्तमान काल में बीस विहरमान तीर्थंकरजी महाविदेह क्षेत्र में विचरते हैं एक हजार आठ लक्षण के धारक , 34 अतिशय , 35 वाणी के गुणों से युक्त , 64 इन्द्रों के वंदनीय , पूजनीय , अठारह दोष रहित , *बारह गुण सहित 1 . अणासवे , 2 . अममे , 3 . अकिंचणे , 4 . छिन्नसोए , 5 . निरुवलेवे , 6 . ववगय - पेम - राग - दोस - मोहे , 7 . निग्गंथस्स पावयणं देसए , 8 . सत्थनायगे , 9 . अणंतनाणी , 10 . अणंतदंसी , 11 . अणंतचरित्ते , 12 . अणंतवीरियसंजुत्ते , आठ महाप्रतिहार्यों से युक्त , अढाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र में विचरें तथापृथक्त्व💎 करोड़ केवली ,* केवलज्ञान , केवलदर्शन के धरणहार , सर्व द्रव्य , क्षेत्र , काल , भाव के जाननहार हैं।

 *पाँचवीं भाव वन्दना* ' णमो लोए सव्वसाहूणं ' - अर्थात् *पाँचवें पद में पृथक्त्व 💎💎 हजार करोड़ श्री साधुजी महाराज अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र रूप लोक में विचरते हैं।* पाँच महाव्रत पाले , पाँच इन्द्रिय जीते , चार कषाय के त्यागी , भाव सच्चे , जोग सच्चे , करण सच्चे , क्षमावंत , वैराग्यवंत , मनसमाधारणया , वयसमाधारणया , कायसमाधारणया , णाण संपण्णया , दंसण संपण्णया , चारित्त संपण्णया , *वेयण अहियासणया, मारणंतिय अहियासणया🔆 इन 27 गुणों से युक्त , .......*

*जघन्य का तात्पर्य सबसे कम एवं उत्कृष्ट का तात्पर्य सर्वाधिक होता है एक साथ तीर्थकर भगवान उत्कृष्ट 170 ( सभी क्षेत्रों को मिलाकर ) हो सकते है , इसलिए 160 की संख्या उत्कृष्ट होने से 160 की संख्या को हटाया गया है।*

*दिव्य ध्वनि , भामण्डल आदि प्रतिहार्य तीर्थंकर देवों का बाह्य वैभव है इन प्रतिहार्यों में से अधिकांश देवकृत होते हैं श्रीमद् औपपातिक सूत्र आदि ग्रंथों में अन्य प्रकार से उपलब्ध 12 गुण , जो अरिहंतों के मौलिक आध्यात्मिक गुण हैं , उन्हें प्रथम भाव वंदना में स्थान दिया गया है।*

💎 *आगमानुसार केवलियों की संख्यापृथक्त्व करोड़ है।*

💎💎 *पूर्व में यहाँ जघन्य 2 हजार करोड़ , उत्कृष्ट 9 हजार करोड़ कहा जाता रहा है , किन्तु विहरमानों के वर्णन में जघन्य 2 हजार करोड़ साधु एवं जघन्य 2 हजार करोड़ साध्वियों कही गई हैं इस कारण पाँचवें पद की जघन्य संख्या 4 हजार करोड़ हो जाती है एवं पृथक्त्व का जघन्य मान 2 लेकर यदि श्रीमद् भगवतीसूत्र शतक 25 उद्देशक 6 , 7 में प्रतिसेवणा कुशील के जघन्य परिमाण का योग कर तो भी जघन्य संख्या 2600 करोड़ हो जाती है , अतः श्रीमद् भगवतीसूत्र शतक 25 उद्देशक 6 एवं 7 में पृथक्त्व हजार करोड़ साधुओं का उल्लेख किया गया है तद्नुसार यहाँ पाँचवें पद में पृथक्त्व हजार करोड़ का कथन कहना चाहिए।*

🔆 *श्रीमत् समवायांग सूत्र के 27वें समवाय में वेयण अहियासणया मारणंतिय अहियासणया पाठ है वेदनीय समाअहियासनीया , मारणांतिक समाअहियासनीया अशुद्ध है।*

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