आयुर्वेदिक औषधि
Ayurvedic Medicine
आयुर्वेदिक औषधि
Ayurvedic Medicine
मूत्राशय संबंधी रोग : यकृत—
पथरी (केलक्यूरी) : इस रोग में पेशाब रूक—रूक कर आने लगती है। घण्टों पेशाब नहीं उतरती। पेडू में एवं पीछे असहाय दर्द होता है। रोगी तड़पने तक लगता है। निम्न मेंसे किसी भी दवा का प्रयोग करेें।
अचूक उपचार : १. पाषाण भेद १०० ग्राम, बड़ी गुरूखुरू १०० ग्राम, सागौन के बीज १०० ग्राम, जवाखार ५० ग्राम ( इसे थोड़ा सा बाद में डालें)। पहले तीनों दवाओं को जौ—कूट कर २० ग्राम दवा को २५० ग्राम पानी में काढ़ा (चौथाई भाग शेष रहने पर) छानकर गरम—गरम सुबह—शाम भोजन से पूर्व पीने से पथरी टूट—टूट कर कण—कण होकर पेशाब केरास्ते निकल जाती है।
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कच्ची हर्र—
१.कच्ची हर्र बहुत ही उपयोगी है। इसका एक चम्मच चूर्ण गर्म जल के साथ लेने से पाखाना (शौच) साफ होता है।
२. भुनी हुई हर्र के एक चम्मच चूर्ण में थोड़ा सेंधानमक और अजवान मिलाकर लेने से पाचन शक्ति बढ़ती है।पेट के कीटाणु नष्ट होते हैं।
३. हर्र को साफ पत्थर पर धिसकर आँख में लगाने से आँख में कीचड़ का आना, आँख से आँसू निकलना ठीक हो जाता है
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बहेड़ा :
१. इसका छिलका खाँसी पर लाभकारी है एवं यह त्रिफला का एक अँग है।
२. नाभि के टलने पर बहेड़ा का प्रयोग—इसे (घन्न—चली—जाना) अथवा पेट टरना आदि कहते हैं। इसमें आँत की गुठली थोड़ी सी खिसक जाती है। पेट में पीड़ादायी दर्द होता है। इस रोग में बहेड़े फल की ५० ग्राम मात्रा लेकर उसे पीस कर एक किलो पानी में डालकर मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच में पकाकर काड़ा बनायें। १०० ग्राम शेष रहने पर इसकी लगभग २५—२५ ग्राम मात्रा दिन में तीन—चार बार पिलाने से नाभि स्वयं अपने स्थान पर आ जाती है।
३. कुष्ठ रोग पर बहेड़े की गिरी का तेल एवं बकुची का तेल मिलाकर लगाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।
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