आयुर्वेदिक औषधि
Ayurvedic Medicine
मट्ठा (छाछ) :
नोट— मट्ठे का सेवन करने वाला व्यक्ति कभी व्यथित नहीं होता। मट्ठे के सेवन से नष्ट रोग पुन: उत्पन्न नहीं होते। जैसे देवताओं को अमृत सुखदायी है। उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को मट्ठा सुखदायी है। गाय मट्ठा बहुत अच्छा होता है।
-------------------------------------------------------------------------------
------------------------------------------------------------------------------
ईसबगोल एवं ईसबगोल की भूसी :
१. ईसबगोल यह पाचक है। बच्चों के दस्त आने पर घोलकर देने से लाभ होता है।
२. ईसबगोल की भूसी : यह ताकतबर होती है। एक चम्मच भूसी को दूध में घोलकर लेने से अमाशय ठीक होता है। शौच साफ होता है।
-------------------------------------------------------------------------------
मेंथी :
१. मेंथी के ५ ग्राम दानों को एक गिलास पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह पानी पीने से सुगर में आराम होता है।
२. मेंथी २० ग्राम लेकर १०० ग्राम सरसों के तेल में उबालकर छानकर शरीर में मालिश करने से बदन का दर्द ठीक हो जाता है।
३. मेथी की सब्जी (पत्तों की भी) बादी नाशक है। पाचन शक्ति वर्धक है।
४. मेथी में जीरा, नमक मिलाकर खाने से भोजन पचता है। रूचि बढ़ती है।
५. मेथी में जीरा, नमक मिलाकर खाने से भोजन पचता है। रुचि बढ़ती है।
-------------------------------------------------------------------------------
आयुर्वेद में तुलसी :
तुलसी श्यामाा एवं रामा दो प्रकार की होती है।
१. श्यामा तुलसी के पत्ते श्यामले रंग के होते हैं, इसके २५—३० पत्तों का रस सर्प काटै पर लाभ करता है।
२. श्यामा तुलसी के बीजों का आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सीरे के साथ देने पर वैंसर रोग में लाभकारी है।
३. दोनों ही प्रकार की तुलसी बहुत उपयोगी है। इसको चाय में ८—१० पत्ते डालकर पीने से सर्दी, जुकाम ठीक होता है। बल्गम साफ हो जाता है।
-------------------------------------------------------------------------------
आयुर्वेद में आँवला— (च्वन औरा) :
१. आँवला का अचार कभी नुकसान नहीं करता एवं अनेक रोगों में लाभकारी है।यह खटाई की श्रेणी में नहीं माना जाता।
२. चमन ऋषि ने आँवला के रस को मुख्य लेकर उसमें अष्टवर्गादि औषधियों के मिश्रण से च्यवनप्रास अवलेह निर्माण किया था। जिससे ६० वर्ष के बुढ़ापे में ऋषि में २० वर्ष जैसी ताकत आ गई थी।
३. इसके हरा फल के रस का सेवन करने से हार्ट अटैक की बीमारी नहीं होती।
४. इसके अकेले चूर्ण के एक चम्मच प्रतिदिन खाने से सुगर/बी.पी. की शिकायत शान्त होती है। हार्ट के दौरा की सम्भावना नहीं रहती।
५. इसको लोहे के एक गिलास में २० ग्राम रात्रि में भिगोकर सुबह शिर में आधा घण्टा तक लगाए रखें।इससे सिर के बाल सपेद नहीं पड़ते। सिर दर्द दूर रहता है।
६. आँवले की चटनी में जीरा, मेथी, धनिया, नमक (मिर्च नहीं) खाने से अजीर्ण दूर होता है। भोजन शीघ्र पचता है।
७. आँवला के दो चम्मच जूस को लगातार पीते रहने से हकलाने का रोग दूर होता है। गला खुल जाता है।आवाज साफ होती है।
-------------------------------------------------------------------------------
अधिक प्यास लगने पर :
पेय—
१. लवंग की जड़ चिड़चिड़ी की जड़, दोनों को २०—२० ग्राम लेकर एक गिलास जल में उबालें। आधा शेष रहने पर पिलाने से लाभ होगा।
२. बेरी की गुठली की मिगी (बिजी) एवं लवंग दोनों को बराबर पीसकर सीरा के साथ खिलाने पर बुखार की बार—बार लगने वाली प्यास शान्त होती है।
३. कपूर ५ ग्राम, केला की जड़ का रस १० ग्राम, पुदीना के पत्ते का रस १० ग्राम, सौंफ १० ग्राम। सभी को पीसकर ५०० ग्राम पानी में उबालें। चौथाई शेष रहने पर छानकर पिलावें। इससे उल्टी में भी आराम होता है।
-------------------------------------------------------------------------------
अधिक पसीना आना :
उपचार— नाौसादर को पानी में घोलकर वदन में लगायें बाद में पौंछ ले। पसीना आना कम हो जाएगा
-------------------------------------------------------------------------------
कौड़ी का दर्द :
(वह स्थान जहाँ—जहाँ छाती में दोनो तरफ की पसलियाँ आपस में मिलती हैं।)
औषधि :
१. थोड़ी हींग (हिंगड़ा) को मुनक्का के भीतर लपेटकर पानी से पीले। इससे इस दर्द में शीघ्र आराम हो जाता है। तीन घण्टे पश्चात् दूसरी खुराक भी लें सकते हैं। इससे वायु विकास—गैस ठीक होता है एवं हिचकी भी बन्द हो जाती है।
परहेज— मट्ठा, दही खट्टी चाँवल न लें।
पथ्य— छिलका वाली मूँग की दाल, गेहूँ की रोटी, दलिया। शिशु रोग —धनवन्तरि विशेषाज्र्क (रोगाज्र्क)
No comments:
Post a Comment