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लक्ष्य निर्धारित कर सम्यकत्व के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष का मार्ग मिलेगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा.

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गिरनार के 9999 चरण (पगथिया) कब और किसके द्वारा बनाए गए थे ? जानें इसका पूरा इतिहास

 गिरनार के 9999 चरण (पगथिया) कब और किसके द्वारा बनाए गए थे ? जानें इसका पूरा इतिहास 

जब बात जूनागढ़ की हो, तो दिमाग में एक ही बात आती है, कि जूनागढ़ का गौरव, गिरनार सभी के लिए आस्था का प्रतीक है।

गिरनार पर चढ़ने के लिए हर साल लाखों भक्त आते हैं। 


गिरनार पर…

श्री नेमिनाथदादा की टुंक (कुल 14 टुंक), 

श्री अंबिका माँ और ... 

शीर्ष पर ... 

श्री नेमिनाथदादा का मोक्ष कल्याणक टुंक और ... 

श्री दत्तात्रेय का निवास है। 





आपने भी कई बार गिरनार के पगथिये चूमे होंगे, 
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ...।

किसने बनाये ये सब पगथिये ? 

कैसे बनाये है ..?


तो आइए जानते हैं पूरा इतिहास..

गिरनार के निर्माण और उसके पगथियों से जुड़ा एक लंबा इतिहास है। हम सभी जानते हैं कि गिरनार गुजरात का सबसे ऊँचा पर्वत है। लोग यात्रा करने के लिए पूरे वर्ष यहां आते हैं और लोग देवदीवली के समय लीली परिक्रमा का आनंद भी लेते हैं।


यह सदियों पहले की बात है जब गुजरात को जीत दिलाने के बाद उदयन मंत्री रणछ्वानी में थे। लेकिन उसका शरीर लड़ाई में घायल हो गया था। इस दौरान युद्ध से विजयी होकर लौटते समय उनकी मृत्यु हो गई। उस वक्त उन्होंने अपने बेटे को एक पत्र दिया था।

जब उनके बेटे ने संदेश पढ़ा, तो उसमें उन्होंने कहा था कि, "मेरी इच्छा है कि शैत्रुजंय में उगादिदेव मंदिर का जीर्णोद्धार और गिरनार मंदिर तक चढ़ने के लिए पगथीये बनाए जाए।"


अपने पिता के इस संदेश को पढ़ने के बाद, उनके बेटे बाहड मन्त्री ने शत्रुजंय पे उगादिदेव का मंदिर बनवाया। उन्होंने महात्म्य उदयन की एक इच्छा पूरी की। लेकिन अब गिरनार मंदिर पर रस्ता बनाना बाकी था। वह इच्छा अभी पूरी होनी बाकी थी।


उनके पिता के अनुसार, बाहड मंत्री गिरनार में पगडंडी बनाने के लिए जूनागढ़ आए थे। यहां उन्होंने पहाड़ पर ऊंची चट्टानें देखीं। उन्होंने पर्वत की विशालता और बादलों से बात करते हुए चोटियों को देखा। यह सब देखकर, वे शुरू में उलझन में थे कि इतने बड़े पहाड़ पर रस्ता कैसे बनाया जाए। उनके साथ आए मूर्तिकारों ने कड़ी मेहनत की लेकिन किसी को समझ नहीं आया कि सड़क को कहां से शुरू किया जाए।


बाहड मंत्री ने बहुत सोचा लेकिन उसे समझ नहीं आया कि गिरनार के लिए रस्ता कहाँ से पार करें। तब उन्हें गिरनार के रक्षक मां अंबा की याद आई। वे संकल्प करके माँ अम्बा के चरणों में बैठ गए। उसके दिमाग में बस यही था कि मां तुम मुझे रास्ता दिखाओ कि मैं कैसे गिरनार पर चढ़ने के लिए कदम बढ़ा सकता हूं। ताकि मैं अपने पिता से किए गए वादे से मुक्त हो सकूं।


उन्होंने माँ का आशीर्वाद पाने के लिए उपवास करना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, तीन दिन बीत गए और मंत्री को भरोसा हो गया कि अप्रत्याशित रूप से मेरी माँ इस समस्या का समाधान करेगी। और ऐसा ही हुआ, उनका विश्वास सही निकला। तीसरे उपवास के दिन, माँ अम्बा प्रकट हुईं और कहाँ मे जिस रास्ते पे चावल डालती जाउ वहाँ रास्ता (पगथीये) बनाने के लिए कहा।

यह सुनकर मंत्री जी बहुत खुश हुए। खुशी ने माहौल को आनंद से भर दिया। मां अंबिका मुश्किल रास्तों के बीच में चावल डालने के लिए गिरनार गई और रास्ते में चावल डालते गईं और वहाँ रास्ता मिलता गया। एक क्षण ऐसा भी आया जब आत्मनिरीक्षण की आवाज गूंज उठी। ऐसा करने के बाद बाहड मंत्री कर्ज राहत की खुशी मनाई और उस जमाने मे त्रेसठ लाख रुपये के खर्च करने के बाद यह पगथिये बने।


दोस्तों, मैं आपको बता दूं कि आज हम गिरनार की यात्रा इतनी आसानी से कर सकते हैं कि केवल बाहड मंत्री की वजह से। गिरनार पर पगथिये और रस्ता बनाने वाले उस शख्स का बहुत-बहुत शुक्रिया। जिसके कारण हम आसानी से श्री नेमिनाथदादा, श्री अम्बिका माँ और दत्तात्रेय के दर्शन कर सकते हैं।


🙏 जय गिरनार .. जय नेमिनाथ  जय माता दी🙏

      

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