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लक्ष्य निर्धारित कर सम्यकत्व के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष का मार्ग मिलेगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा.

लक्ष्य निर्धारित कर सम्यकत्व के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष का मार्ग मिलेगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा. 

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नाकोडा पार्श्वनाथ जैन तीर्थ

 श्री  नाकोडा पार्श्वनाथ - मेवानगर 

              सप्तफणों से अलंकृत श्याम पाषाण के पद्मासनरूढ २१ इंच ऊँचे १८  इंच चौडे श्री नाकोडा पार्श्वनाथ प्रभुजी नाकोडाजी तीर्थ मे मूळनायक के रूप मे बिराजमान है ...

Nakoda parshvnath parasnath jainnews.in


राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र के बाड़मेर जिले के बालोतरा औद्योगिक कस्बे से १२ किलोमीटर दूर पर्वतीय श्रृंखलाओं के मध्य प्राकृतिक नयनाभिराम दृश्यों, प्राचीन स्थापत्य एवं शिल्पकला कृतियों के बेजोड़ नमूनों, आधुनिक साज सज्जा से परिपूर्ण विश्वविख्यात जैन तीर्थ श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ आया हुआ है।


अतित की गहराइयों मे एक डुबकी... 


       श्री नाकोडा पार्थनाथजी के इस धाम मेवानगर का प्राचीन नाम विरमपुर था । यह नगर विक्रम सवंत के पहेले तीसरी शताब्दी मे बसा हुआ था ।  राजा के दो पुत्र विरम दत्त और नाकोर ने दस माइल के अंतर पर विरमपुर और नाकोरनगर ऐसे दो नगर बसाये थे । दोनो नगरों मे भव्य जिनालयो का निर्माण करवा कर श्री चंद्रप्रभ स्वामी और सुपार्श्वनाथस्वामी की परम पूज्य श्री स्थूलिभद्रस्वामी के शुभ हस्तक प्रतिष्ठा करवायी । कालातंर मे वीर संवत २८१ मे महाराजा संप्रति ने ने जिर्णाद्घार करवा कर आर्यहस्तसूरिजी का निश्रामां में प्रतिष्ठिा करवायी । वीर संवत ५०५ मे महाराजा विक्रमादित्य ने  भी दोनो जिनालयो का जीर्णोद्धार करवा कर श्री सिद्धसेन दिवाकरसूरीजी के हस्तक प्रतिष्ठा करवायी । विक्रम संवत ६२ में पुन: जीर्णोद्धार करवा कर श्री मानतुंगसूरिजी के शुभ हस्तक प्रतिष्ठा हुयी । वि.स.४१५ मे श्रीमद् विजय देवसूरीश्वरजी के उपदेश से जिर्णोद्घार हुआ । वि.स. ९०९ मे भातेरा गोत्र के श्रेष्ठी 

श्रीहरखचंजी ने इस जिनालय का जीर्णोद्धार करवाया । श्री चंद्रप्रभस्वामीजी की प्रतिमा खंडित होने से उनके स्थान पर श्री महावीरस्वामी की प्रतिमाजी के स्थापित करवाया था । वि. स. १२२३ मे श्री संघ ने जिर्णाद्घार करवाया था । विक्रम संवत १२८० मे दोनो नगरो पर मुस्लिमों के आक्रमण के भय से मूळनायक परमात्मा को वहाँ से दो माईल दूर कालीद्रह मे छुपा दिए थे । कालांतर मे दोनो नगर विरान हो गएँ । 


       विरमपुर का पुनःविकास हुआ  प्राचीन जिनालय का जीर्णोद्धार करवाया गया । प्रतिमाजी की शोध चालु हुयी । स्वप्न द्वारा अधिष्ठायक देव ने कालीद्रह मे गुप्त प्रतिमाजी की जानकारी दी ।


               मंदिर में तीर्थोंद्धारक खतरगच्छ आचार्य कीर्तिरत्न सुरिजी की पीत्त पाषाण की प्रतिमा विराजमान है, जिस पर सं. १३५६ का शिलालेख विद्यमान है। 


नाकोर नगर से प्रतिमा को वीरमपुर लाकर विक्रम सवंत १४२९ मे प्रतिष्ठित करवाये। 

वर्तमान समय की प्रतिमाजी मूळ नाकोर नगर के होने से श्री  नाकोडा पार्श्वनाथ के नाम से पहचाने जाने लगे  वीरमपुर भी नाकोडा के नाम से जगप्रसिद्ध हुआ । 


संवत 1959 - 60 में साध्वी प्रवर्तिनी श्री सुन्दर जी ने इस तीर्थ के पुन: उद्धार का काम प्रारंभ कराया और गुरु भ्राता आचार्य श्री हिमाचल सूरीजी भी उनके साथ जुड़ गये। इनके अथक प्रयासों से आज ये तीर्थ विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहा है। मूल नायक श्री नाकोडा पार्श्वनाथ जी के मुख्य मंदिर के अलावा दुसरा प्रथम तीर्थंकर परमात्मा श्री आदिनाथ प्रभु एवं तीसरा मंदिर सोलवें तीर्थंकर परमात्मा श्री शांतिनाथ प्रभु का है। इसके अतिरिक्त अनेक देवालय, ददावाडियाँ एवं गुरुमंदिर है जो मूर्तिपूजक परंपरा के सभी गछों को एक संगठित रूप से संयोजे हुए है।

कैसे पहुँचे

यह तीर्थ जोधपुर से 116 किमी तथा बालोतरा से 12 किमी (उत्तरी रेलवे स्टेशन) जोधपुर बाड़मेर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है।

तीर्थ स्थान प्राय: सभी केंद्र स्थानों से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।


       तीर्थाधिष्ठायिक श्री भैरवजी तीर्थ की रक्षा हेतु सदा जागृत है । 


 स्तुति


 प्रशम झरतुं मुखलडुं अमीरस झरंती आंखडी, मेवानगरना राजीया पूरी करे सहु आखडी, भैरव नाकोडा करे सान्निध्य जेनुं लळी लळी,श्री नाकोडा प्रभु पार्श्वने भावे करुं हुं वंदना


जाप मंत्र


ॐ ह्रीं अर्हं श्री नाकोडा पार्श्वनाथाय नमः


मंदिर के खुलने का समय

गर्मी (चैत्र सुदी एकम से कार्तिक वदी अमावस तक)

प्रातः : 5:30 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक

सर्दी (कार्तिक सुदी एकम से चैत्र वदी अमावस तक)

प्रातः : 6:00 बजे से रात्रि : 9:30 बजे तक विशेष


भोजनशाळा तथा धर्मशाळा की सुंदर व्यवस्था उपलब्ध है। 


तीर्थ का पता 

श्री नाकोडा पार्श्वनाथ श्वेताम्बर जैन तीर्थ, 

मु.पो.मेवानगर,स्टे.बालोतरा,जि.बाडमेर (राजस्थान)

फोन:०२९८८-२४०००५ /

०२९८८-२४००९६


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