आयुर्वेदिक औषधि Ayurvedic Medicine

आयुर्वेदिक औषधि उपचारAyurvedic Medicine



पैर में काँटा लगना :

उपचार : १. यदि काँटा निकल नहीं रहा हो तो गुड़ पिंघला कर उसमें अजवाइन मिलाकर उसकी लुगदी बना कर स्थान पर बाँध दें। काँटा निकल जाएगा।

२. काँटे वाले स्थान पर थोड़ा आँक कर दूध ४—५ बूँद भर दें। काँटा निकल जाएगा।

अन्य उपचार :

१. सिन्दूर १० ग्राम, मुर्दाशंख १० ग्राम, नीलाथोथा ५ ग्राम, हींग असली ढाई ग्राम, मोम १०० ग्राम, पीली सरसों का तेल २०० ग्राम।

निर्माण विधि : पहले तेल को कढ़ाई में गर्म करें, उसमें सिन्दूर डाले फिर उसी में मुर्दा राख पीसकर थोड़ा—थोड़ा डालते रहें, उसके पश्चात् नीला थोथा पीसकर थोड़ा—थोड़ा डालते जाएँ। उसके बाद हींग डाल दें व मोम पिघलाकर डालें। फिर गरम गरम ही कपड़े या मैंदा छलनी से छान लें। वर्तन पीतल का नहीं होना चाहिए। कैसा भी फोड़ा—फुन्सी हो ठीक हो जाएगा।

२. भृंगराज (घमरा घास) के पत्तों को धोकर महीन पीसकर किसी व्रण (घाव) पर लगाते रहें। इसकी लुग्दी बना बाँधे। पुराना घाव भी ठीक होता है। किसी स्थान पर चोट से खून आता हो तो वह भी बन्द हो जाता है।
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सूखी खुजली :

उपचार : १. खुरासानी अजवाइन पीसकर सूखी मालिश करें, अथवा तेल में उबालकर करें।
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सेहुआ :
उपचार : चिंरोजी का तेल लगाने से ठीक हो जाता है।

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हारपीज् :

उपचार : १. ५० ग्राम इमली गर्म पानी में भिगोएँ। फिर मसलकर उसको छन्नी से छानकर इस घोल को सीने पर अगल—बगल जहाँ हारपीज का असर हो वहाँ लगाएँ— फिर नीम के पानी से धोएँ। पश्चात् नारियल के तेल में कपूर मिलाकर शरीर में मालिश करें। रोग ठीक हो जाता है। जलन कम हो जाती है।
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एग्जीमा :

उपचार (१) दो किलो नारियल की खोपरी को छोटा—छोटा पिसकर उसे मिट्टी के सीझे—चिकने बर्तन से भरें। नीचे छेद करके उसके नीचे सीझा मिट्टी का बर्तन रखें। एवं ऊपर ढक्कन रखकर मिट्टी से थाप दो। फिर उसे उपले की आग में पकाएँ। ऐसा करने से नारियल खपरिया का रोगन नीचे रखे हुए बर्तन में आ जाएगा। फिर धीरे से राख को अलग कर सावधानी से ऊपर का बर्तन उठाऐं। तब नीचे का बर्तन जिसमें रोगन आ गया है, उसे उठाकर किसी काँच की शीशी में रख लें इसमें अशुद्ध पारा एवं अशुद्ध गन्धक की कज्जली बना कर मिला देंवें। फिर एग्जिमा वाले स्थान को नीम की पत्ती के पानी से धोकर यह दवा रूई से लगा दें शीध्र लाभ होता है। (साबुन का प्रयोग न करें।)

(२) २५० ग्राम सरसों के तेल में ५० ग्राम नीम की कोंपल को लोहे की कढाई में धीमी—धीमी आँच में उबालें। पत्ती काली पडने पर उतार—छान ओर ठण्डा करके शीशी में भर लें। नित्य तीन—चार बार यह तेल लगाने से एग्जिमा ठीक हो जाएगा।

(३) हल्दी एवं बेसन समान मात्रा में लेकर एग्जिमा वाले स्थान पर लगाएँ। १५ मिनट पश्चात् धो लें एग्जिमा ठीक हो जाएगा। साबुन वर्जित है। नीको सोप लगा सकते हैं।
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एग्जिमा, अकौत, छाजन :

उपचार— कनेर वृक्ष के पञ्चाँग (जड़, फूल, पत्ते, छाल, लकड़ी) आदि सभी को पानी में पीसकर लुगदी बना लें। समभाग में गौ—मूत्र और सरसों का तेल डालकर धीमी आँच में पकाएँ। तेल बराबर शेष रहने पर काँच की शीशा में भरकर रख लें। इसके लगाने से अकौता, छाजन, एग्जिमा आदि चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। साबुन का प्रयोग र्विजत है। कनेर के पत्ते पहले धो लेना चाहिए।
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फोड़ा :

उपचार : १. हरे ताजे मैनफल को लाकर बीजों सहित महीन पीसकर (सिल—बट्टा से) लुगदी बनाकर व्रण (फोड़ा) पर बाँधे। कैसा भी फोड़ा क्यों न हो, बड़े—बड़े डॉक्टर निराश हो गए हों। धीरे—धीरे यह पुल्टस बाँधने पर उससे शनैं: शनै: पीव निकलती हुई फोड़ा १५—२० दिन में ठीक हो जाता है । अचूक नुस्खा है।
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घाव—फोड़ा :

उपचार—  ५०० ग्राम घृत (गाय का शुद्ध घीं) में  नीम के पत्ते ५० ग्राम डालकर घीमी आँच पर इतना उबालें कि पत्ते काले पड़ जाएँ ।
इसके बाद घाव- फोडा पर लगाने से ठीक हो जाता हैं ।

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ज्वर (फीवर) : संबधी समस्या—

मलेरिया :
इस बुखार में कुनने संबंधित औषधि एलोपैथी में भी है किन्तु इसके सेवन से अत्यधिक गर्मीं बढ़ जाती है और पीलिया तक होने की संभावना रहती है। आयुर्वेंद में इसकी रामबाण औषधि निम्न है

औषधि : १. नाय घास (दमजरी यह एक ऐसी घांस है जिसका पौधा ८—१० इन्च ऊँचा होता है तथा कडुवा होने के कारण इसे जानवर भी नहीं खाते। इसका काढ़ा बनाने के लिए २५० ग्राम पानी में १० ग्राम नायघास डालकर धीमी आँच में पकाएँ। ५० ग्राम शेष रहने पर भोजन के पूर्व छानकर पीना चाहिए। तुरन्त इलायची सौंंप के साथ पुन: पानी पीना चाहिए।

२.नायघास, चिरायता, नीम की छाल और गलोय (गुरुचि, गुरमें ) सभी को समान मात्रा में लेकर कूट—पीस छान कर १० ग्राम औषधि को उक्तानुसार काढ़ा बनाकर सेवन करें। इसे इकतरा, द्वितीयक मलेरिया ज्वर भी नित्य औषधि के सेवन करने से एक सप्ताह में रोग समाप्त हो जाता है।

Gharelu Upchar, Gharelu Nuskhe (घरेलू नुस्खे) for ...
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पित्त ज्वर:
उपचार : गर्मीं के कारण अथवा लू लगने के कारण आए ज्वर में रोगी का कंठ सूख जाता है, भीषण दाह होती है, तृषा अधिक होती है। इसमें घनापंचक काढ़ा पिलाना चाहिए। घनापंचक काढ़ा— नाीम की छाल गुरमें, घना, लालचंदन, पदमदाख चन्दन सम भाग लेकर १० ग्राम± दवा ५०० ग्राम पानी में धीमी से उबालें १/४ भाग शेष रहने पर छानकर ७ दिन पिलाएँ जड़ से बुखार ठीक हो जाएगा।
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सोते हुए बिस्तर पर पेशाब करना :

औषधि : एक अखरोट की गिरी को १०—किसमिस के साथ खिलाने से ८—१० दिनों में बिस्तर पर पेशाब करने की समस्या दूर हो जाती है।
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बच्चों के हरे—पीले दस्त :

उपचार : १. जायफल, अतीस और ईसबगोल तीनोें की १०—१० ग्राम मात्रा लेकर महीन पीस लेें। बच्चे की उम्र अनुसार थोड़ी दवा लेकर चिकनी सिल पर पानी डालकर गारें। माँ के दूध में बच्चे को दें।

२. चूने का पानी एक—एक चम्मच पिलाएँ। चूने का पानी मिट्टी के घड़े में एक सप्ताह चूना पानी भिगोने के पश्चात् निथार कर बनता है। बच्चों का ग्राइप वाटर इसका ही प्रकार है।

३. सूखा रोग के कारण ऐसे दस्त हो रहे हों तो इतवार/ बुधवार किसी भी एक दिन प्रात:काल बरगद के पेड़ की लटकती हुई हरी जड़ लेकर छोटी सी कुंडी सी बनाकर उसे नीले रंग के धागे से लपेटकर उसी दिन बालक के गले में पहना दें। ऐसा करने पर सूखा रोग से पीड़ित रोगी ठीक होगा एवं दस्त भी ठीक हो जाएँगे। (तंत्रशास्त्र)

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लू लगने पर :

उपचार : १.चने की भाजी को पानी में भिगोकर छानकर वह पानी शरीर पर लगाएँ।

२. टेसू (पलास, ढाक) के फूल का पानी शरीर पर लगाना चाहिए।

३. मावा (खोया) की बर्फी/पेड़ा घोलकर पिलाने से तीव्र लू का झटका शीध्र ठीक हो जाता है। नोट— बुखार—लू आदि बीमारी के बाद स्वस्थ्य होने पर चन्दनबाला लाक्षादि की मालिश से कमजोरी ठीक हो जाती है। बदन दर्द ठीक हो जाता है।

४. पैर के तलवे में लौकी पीस करके घिसे ३० मिनिट तक।

५. गरी का तेल तलवों में लगाकर ऊपर से काँसे का बेला (बर्तन) घिसें।
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कफ ज्वर में :
 उपचार : त्रिसून गोली (झण्डू वंâ. की ) एक—एक गोली सुबह—शाम पानी के साथ एक सप्ताह सेवन करें।
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मोतीझरा :
 लक्षण— इसमें रोगी को गले के पास सीने में मोती जैसे दाने चमकते हुए से दिखते हैं। अन्दर से बहुत दाह होती हैं। किन्तु मलेरिया बुखार बिगड़ने से जो मलेरियल टाईफाइड होता है उसमें उपरोक्त लक्षण नहीं पाए जाते। विशेष नोट— दाने वाले मोतीझरा में रोगी को किसी प्रकार एनीमा द्वारा मल न निकालें। और न ही तेज जुलाब (लक्जेटिव) औषधि दें। ऐसा करने से आयुक्षय जैसी गम्भीर स्थिति की सम्भावना उत्पन्न हो सकती है। इसके स्थान पर कच्ची हर्र अथवा मुनक्का के दूध से विरेचन कराएँ चिकित्सा— मोतीभस्म १ ग्राम, ग्लोयसत्व १० ग्राम, सीतोपलादि चूर्ण ५० ग्राम, स्वर्णबसततमालती १ ग्राम, सभी को मिलाकर एकक शीशी में रख लें नित्य एक चौथाई ग्राम (बच्चों/आयु के अनुसार कम—अधिक) सीरा के साथ सेवन करें।

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सीतोपलादि चूर्ण  बनाने की विधि : 
तज (दालचीनी १० ग्राम, इलायची २० ग्राम, पीपल ४० ग्राम, वंश लोचन ८० ग्राम तथा मिश्री १६.० ग्राम लेकर कूट—पीस कपड़ाछान कर उसका चूर्ण बनाकर एक शीशी में भर कर रखें। नोट : मुनियों के लिए चूर्ण बनाने में मिश्री न मिलाएँ एवं चूर्ण देने के समय चासनी (सीरा) के साथ दें। परहेज : दाने वाले मोतीझरा के रोगी को अनाज कतई न दें। दूध एवं फलों का जूस ग्लूकोज देना चाहिए। पानी को उबाल कर ठण्डा करके दें। बर्पâ, एवं प्रिज का पानी न दें।
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फ्लू :
उपचार ४ लवंग, ८ कालीमिर्च, १६ तुलसीपत्र लेकर साफ करके २५० ग्राम पानी में उबालें। ५० ग्राम काड़ा शेष बचने पर गर्म—गर्म पीने से तुरन्त लाभ होता है। यह औषधि सर्दी जुखाम, बुखार मलेरिया आदि में भी लाभप्रद है।

२. तुलसी की १० पत्तियाँ, ७ कालीमिर्च, को ५०—६० ग्राम जल से पीस कर लुगदी बनाकर शाम को खिलावें।
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पुराना ज्वर / जीर्ण ज्वर
उपचार: १. मलेरिया में फूली फिटकरी एक ग्राम चूर्ण में ५ ग्राम चीनी मिलाकर गुनगुने पानी में लेने से मलेरिया बुखार ठीक होता है। नोट— गर्भवती स्त्री यह दवा न लें।

२. सादा नमक तवे पर धीमी आँच से सेवें। ध्रवें जैसा रंग हो जाने पर थोड़ा—थोड़ा सेवन करें इकतरा, पारी का ज्वर, सभी प्रकार के ज्वर को ठीक करता है।
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शरीर में दाह—जलन की चिकित्सा :
 उपचार विधि : लाल चन्दन, सुगन्ध बाल, दाख आँवला और पित्तपापड़ा इन सभी को १००—१०० ग्राम मात्रा लेकर रखें। फिर २५ ग्राम दवा लेकर ५०० ग्राम पानी में धीमी आँच पर काढ़ा बनाएँ। १०० ग्राम शेष रहने पर ठण्डा करके, छान कर पीने से ४—५ दिवस में ही ज्वर एवं ज्वर की दाह भी ठीक हो जायेगी।

शरीर के किसी भाग हाथ-पैर आदि में दाह-जलन :
उपचार विधि : १.बेर के पत्ते २० कोपल पीसकर दही मे मिलाकर लेप करने से जलन शान्त होती है।

२. कपूर चन्दन और नीम के पत्र को मट्ठे में पीसकर लेप करने से जलन शान्त होती है।

३. गाय का मट्ठा (छाछ) ठण्डा करके उसमें वस्त्र भिगोकर लपेटें।

४. ग्वारपाठा को बीच में से दो भाग करके उसका गूदा घिसने से ठण्डक मिलती है। उसकी सब्जी बनाकर खाएँ।


                       

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