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नेमिनाथ दादा का केवळज्ञान कल्याणक भादरवा वद अमावस
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कल्याणक तथा आराधना विधि
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श्री नेमिनाथ परमात्मा ने दीक्षा लेकर 54 दिनों तक बिना प्रमाद , बिना निद्रा किये अप्रमत भाव से आर्य ,अनार्य देश में विचरण करते हुए गिरनार तीर्थ के सहस्राम्र उद्यान में पधार कर अठ्ठम का तप करके वेतस वृक्ष की नीचे ध्यान में थे , तब भादरवा वद अमावस्या के दिन चित्रा नक्षत्र में केवलज्ञान हुआ। लोकालोक के सभी भावों को देखने और जानने लगे। अठारह दोषों से रहित हुए।
आठ प्रातिहार्य और 34 अतिशयों से युक्त हुए। तब देवों ने आकर समवसरण की रचना की। उसमे मध्य सिंहासन से 120 धनुष बड़ा अशोकवृक्ष की नीचे बैठकर प्रभु ने चार मुख से महाविगई , रात्री भोजन और अभक्ष्य त्याग को समजाती 35 गुणों से युक्त वाणी से देशना दी। जिससे अनेकों पुरुषों और स्त्रीओ ने दीक्षा ली। प्रभु के वरदत्त ( वरदिन्न ) आदि 11 गणधर थे। प्रभु के परिवार में 18000 साधु , यक्षदत्ता आदि 40000 साध्विजी , नंद आदि 169000 श्रावक और महासुव्रता आदि 336000 श्राविका थी।
३०० वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की ,अठ्ठम का तप कर के ,सहस्त्राम्रवन में ५४ दिनो के छद्मस्थ काळ के बाद , भादरवा वद अमावस को केवळज्ञान प्राप्त करने वाले ,और महा विघई तथा अभक्ष्य का त्याग तथा रात्री भोजन निषेध के उपर मार्मिक देशना देने वाले ,११ गणधरो के स्वामी,श्याम वर्ण,शंख लंछन,माता शिवादेवी,पिता समुद्र विजय राजा के नंदन,बाल ब्रह्मचारी भगवंत,गिरनार गिरधारी,करुणा निधान पुरुषोत्तम,कुंभारीयाजी के किरतार,रांतेज के राजा,जामजेधपुर के जगदीश,वालम के वीर,जगत जवाहीर,२२ वे रघुवीर,
श्री श्री श्री
नेमिनाथ दादा का केवळज्ञान कल्याणक
भादरवा वद अमावस के दिन है ।
विश्व की सबसे प्राचीन प्रतिमाजी गिरनार मंडन श्री नेमिनाथ भगवान की है ।
बोलो बोलो
श्री नेमिनाथ भगवान की
जय जय जय
कल्याणक आराधना विधि
तप - एकासणा
इस प्रकार से तप करे -
विधि - १२ लोगस्स का काउसगग, १२ साथिया, उसके उपर १२ फळ और १२ नैवेध रखे , १२ खमासमणा देवे
खमासमणा का दुहा :
“परम पंच परमेष्ठीमां, परमेश्वर भगवान ;
चार निक्षेपे ध्याईए, नमो नमो श्री जिनभाण.”
जाप - २० नवकारवाळी नीचे दिए हुए जाप मंत्र की गिने
ॐ ह्रीं श्री नेमि नाथ सर्वज्ञाय नमः
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